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उत्तर : -- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र एवं तारा इन पाँच प्रकार के ज्योतिषियों में तारागण पाँच वर्ण के होते हैं शेष चन्द्रादि चारों तपे हुए सुवर्ण जैसे वर्ण वाले होते हैं ये सब विशिष्ट वस्त्र एवं अलंकारो से भूषित तथा मुकुटालङ्कत मस्तक वाले होते हैं । केवल इन्द्रों के मुकुटाग्र भाग में प्रभामण्डल स्थानीय चन्द्र मण्डलाकार चिह्न होता है । इस प्रकार सूर्य, ग्रह, नक्षत्र एवं ताराओं के मुकुटों में भी अपने अपने मंडलों के आकार वाले चिह्न होते हैं ।
इसके सम्बन्ध में तत्वार्थ भाष्य में कहा है
मुकुटेषु शिरोमुकुटोपगूहिभिः प्रभामण्डलकल्पै रुज्ज्वलैः यथा स्वचिह्नः विराजमाना द्य तिमन्तो ज्योतिष्का भवन्तीति ।"
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- मुकुटों में, मुकुटों के अग्रभाग के समीप होने वाले प्रभामण्डल के समान यथोचित अपने चिह्नों से विराजमान कान्तिवाले ज्योतिषी देव होते हैं ।
संग्रहणी वृत्ति में "शिरोमुकुटोपगृहिभिः " इस पद "मुकुटाग्र वर्तिभिः " ऐसा अर्थ किया है ।
इसी प्रकार जीवाभिगमवृत्ति में भी कहा है :
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चन्द्रस्य मुकुटे चन्द्रमण्डलं लाञ्छनं स्वनामाङ्क प्रकटितं एवं सूर्यादेरपि ।"
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