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प्राकृतप्रकाशे
गषेष टुंण्डुल-ढण्ढोल-गमेस-घत्ताः ॥ १८९ ॥ ढुण्दुल्लइ । इत्यादि । पक्षे। गवसइ ।
शिलष्यतेः-सामग्गइ । अवयासइ । परिअन्तइ । सिलेसइ॥ म्रक्षेः-चोप्पडइ । मरख। ।। काले राह-आंहेलङ्घ-अहिलस-वच-वम्फ~-मह-सिहविलुम्पाः ( विलुम्फाः ) ॥ १९२ ॥ आहइ । इत्यादि । पक्षे । कसद ॥
प्रतीक्षः सामय-विहीर-विरमालाः ॥ १९३ ।। सामयइ । इत्या. दि। पक्षे पडिदखइ॥
तक्षे स्तच्छ-चच्छ-रम्फाः ॥ १९४ ॥ तच्छइ । इत्यादि । पक्षे। तक्खइ ॥ विकलेः-कोआसइ । वोसह । विअसइ ॥ हसे:-गुञ्जह। हसइ ॥ संसेः-ल्हसइ । परिल्ह सइ सलिलचसणं । हे० । डिम्भइ-संसइ॥
सेर्डर-वोज-वजाः ॥ १९८ ॥ डरइ । इत्यादि । पक्षे । तसइ । न्यसो णिम-गुगौ ॥ ११९ ॥ णिमइ । णुतइ ॥ पर्यसस्तु-पलोदृ । पट । पलहत्थइ ॥ निश्चलेः-शाद। नीसह ॥
उल्लसे रूसल-ऊतुम्भ-मिल्लल-गुलआल----गुचोल्ल-आरोआः ॥ २०२ ॥ ऊसलइ । गुल्ल३ । ह्रस्वत्व-गुजुलुइ । इत्याहि । पक्षे। उल्लसइ ॥ भाले:-भिसइ । भासद ॥ ग्रसश्च-घिसइ । गसइ ॥ ओवाहइ। ओगाहइ । अवगाहत इत्यर्थः ॥ आरोहतेः-च. डई । बलगइ । आरुहइ ॥ मुहे गुम्म-गुमगडौ । २०७॥ पक्षे मुझ॥
दहे रहिऊल-आलुचौ ॥ २०८ ॥ पक्षे डहाइ॥
ग्रहो वल-गेण्ह-हर-पङ्ग-निरुवार-अहिपच्चुआः ॥२०९ ॥ वलइ । गण्हइ । गिण्हइ, इत्यादि ॥
वचो वात् ॥ २११॥ का तुमुन् तव्येषु ॥वोत्तण ।वोत्तं।वोत्तव्यं ॥ दृश स्तन ः ॥ २१३ ॥ दृशोऽन्त्यस्य तकारण सह द्विरुक्त कारो भवति ॥ दळूण । दछु । देब्वं ॥
आः कृगो(१) भूत-भविष्यतोश्र ॥ २१४ ॥ काहीअ । काहिह । काऊग । काउं । कायव्य ॥
छिदि-भिन्दोन्दः ॥ २१६ ॥ छिन्दइ । भिन्दइ ॥ (१) कृत्रः संज्ञेयम् ।
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