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प्राकृतप्रकाशे
दृइ । फतह । विसंवयइ ॥ शीयतेः-झडइ । पश्खोडद ॥ आक्रन्देःणीअहरइ । अक्कन्दइ ॥ खिद्यतेः-जूरह । विसूरइ । खिजाइ ॥
रुधे रुत्थङ्गः ॥ १३३ ॥ उत्थवइ । रुन्धइ ॥ निषेधतेः-हकाइ । निसहइ ॥ तने-तडइ । तडुइ। तडवइ । विरल्लइ । तणइ ॥ उपसर्पःअल्लि अइ । उपसप्प ॥ __ संतपे झटः ॥१४०॥ झाइ । पक्षे । संतप्पा ॥ ओअग्गइ । वावेइ । व्याप्नोतीत्यर्थः॥
क्षिपेलत्थ-अडुक्ख-साल्ल-पेल्ल-णोल्ल-छुह-हुल-परीघत्ताः ॥ १४३ ।। गलत्थइ । परीइ । इत्यादि । पक्षे । खिव ॥
उत्क्षिपे गुलगुञ्छ-उत्थ-अलुत्थ-अभुत-उस्तिक-हकखुवाः॥ १४४॥ आक्षिपे स्तु-णीरवइ । दिखबइ ।
स्वपः कमवस-लिस-लोट्टाः ॥१४६ ॥ पक्षे सुअइ ॥ वेपेःआयम्वइ । आयज्झइ । वेव ॥ विलपझंड-वडवडी ॥१४८॥ पक्षे विलवइ ॥ कृपः-अवहावेइ । कृपांकरोतीत्यर्थः ॥
प्रदीप स्तेअव-सन्दुम-सन्धुक-अभुत्ताः ॥ १५२ ॥ तेअवइ । इत्यादि । पक्षे । पलीव ॥ लुभेः-सम्भावइ । लुब्भइ ॥ क्षुभेःखउरइ । पड्डुहइ । खुभइ । उपालम्भे झङ्ख-पच्चार-वेलवाः ॥१६॥ पक्षे उवालम्भइ ॥ अवे जम्भो जम्भा ॥ १५७ ॥ जम्भे जम्भा इत्या. देशो भवति । वस्तु न भवति । जम्भाइ । जम्भाअइ । अवेरितिकिम् । केलि-पसरो विअम्भइ ॥ नमः-णिसुठइ । भाराकान्तो नमतीत्यर्थः ॥ मण्डे:-चिश्चइ । चिञ्चिअइ । चिञ्चिल्लइ । रीडइ। टिवि. डिकइ । मण्डइ ॥
विश्राम्यतेः-णिव्वाइ । वीसमइ ॥ आक्रमतेः-ओहावइ । उत्थारइ । छुन्दइ । अकमइ ॥
भ्रमेष्टिरिटिल्ल-दुदुल्ल ढण्ढल्ल-चकम्म-भम्मड-भमड-भभाड-त. लअण्ट-झण्ट-झम्प-भुम-गुम-फुम-फुस-दुम-दुस-परी-पराः॥१६॥ . भ्रमे रेते ऽष्टादशादेशा वा भवन्ति ॥ टिरािटल्लइ । इत्यादि । पक्षे । भमइ।।
गमे रई-अइच्छ-अणुवज-अवजस-उक्कुस-अक्कुस-पञ्चहुपच्छन्द-णिम्मह-णी-णीण-णीलुक-पदअ-रम्भ-परिअल्ल-वोल-4. रिअल-णिरिणास-णिवह-अवसह-अवहराः॥ १६२ ॥
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