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खण्डहरोंका वैभव
कतिपय कामसूत्रके विषयको स्पष्ट करनेवाले भी हैं । यहाँपर पुरानी बस्ती में एक और मठ है जिसके व्यवस्थापक महन्त लक्ष्मीनारायणदासजी एम० एल० ए० हैं | इनकी पटुतासे मठकी व्यवस्था ठीक चलती है । यहाँ के अद्भुतालय में सिरपुर व खलारीके कुछ लेख व प्रतिमाएँ हैं । दो मूर्तियाँ शुद्ध गौंड-राजपुरुषकी प्रतीत होती हैं । हाथी-दाँतपर कृष्णलीला मराठा क़लमसे अङ्कित है । ये चित्र बड़े सजीव मालूम होते हैं । पुरातन लेखोंकी छापें व पुरातत्व विषयक, अन्यत्र दुष्प्राय ग्रन्थ भी हैं । सन् १९५५ में जब मैं रायपुर में था तब वहाँ के उत्साही जिलाधीश रा. ब. श्रीयुत गजाधरजी तिवारीने इसके विस्तारपर कुछ क़दम उठाये थे, कुछ नवीन ताम्रपत्रोंका संकलन भी आपने करवाया था, मुझे भी आपने अपनी शोधमें खूब मदद दी थी । रायपुर में रामरत्नजी पाण्डेयके पास पुरातन ताम्रपत्रोंका सामान्य संग्रह है । धमतरी में भी १८वीं शतीका एक राममन्दिर है, जिसके स्तम्भ बड़े सुन्दर और कलापूर्ण हैं ।
आरंग
रायपुर से सम्बलपुर जानेवाले मार्गपर २२ वें मीलपर है । आरंगकी व्युत्पत्ति मयूरध्वजसे मानी जाती है। वस्तुतः आरंग नामक वृक्षसे ही इसका नामकरण उचित जान पड़ता है । क्योंकि इस ओर वृक्ष-परक ग्रामके नाम उचित परिमाण में पाये जाते हैं । यहाँ पुरातन शिल्पकलाका भव्य प्रतीकसम जैन मन्दिर तो है ही । साथ ही हिन्दू धर्म से सम्बन्ध रखनेवाले पुरातन मन्दिर व अवशेष यत्र तत्र सर्वत्र विखरे पाये जाते हैं और आवश्यकता पड़नेपर, जनता द्वारा गृहनिर्माण में भी इन पत्थरोंका खुलकर उपयोग हो जाता है— हुआ है । पुरातन मन्दिरों में महामायाका मन्दिर उल्लेखनीय है । यद्यपि इसकी स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं
१ यह आश्चर्यगृह राजनांदगाँव के राजा घासीदासने बनवाया था,
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