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मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व
३७७ इनका कुछ भी मूल्य न था। शिल्पकलाकी दृष्टि से अनुपम हैं, जिनपर अत्यन्त सूक्ष्म कारीगरीके साथ गणेश, वराहावतारादिकी विशाल मूर्तियाँ उत्कीर्णित हैं। सौभाग्यसे यह स्तम्भ अखण्डित और कलाका ज्वलन्त उदाहरण है । आवश्यकतासे अधिक सिन्दूरका लेप कर देनेसे कलाकी एक प्रकारसे हत्या हो गई है। शिखरके निम्न भागमें रामायणसे सम्बन्धित शिल्प उत्कीर्णित हैं, जो प्राचीन न होते हुए भी सुन्दर हैं। प्रदक्षिणामें नृसिंहावतार आदि तीन प्रतिमाएँ गवाक्ष में प्रतिष्ठित हैं, जो कलाकी साक्षात् प्रतिमा-सी विदित होती हैं। ये सिरपुरसे लाई गई थीं। यहाँ एक वस्तु सर्वथा नवीन और सम्भवतः अन्यत्र दुर्लभ है। वह है रामचन्द्रजीके मन्दिर के एक स्तम्भपर एक महन्त और चिमनाजी भोंसलेका चित्र, जो इतिहास की दृष्टि से अमूल्य है, परन्तु वर्तमान महन्तजीकी अव्यवस्थाके कारण वर्षाऋतुमें यों ही नष्टभ्रष्ट हो रहा है । सुरक्षा वाञ्छनीय है । ___ मठकी स्थापनाका इतिहास तो अज्ञात है, पर ऐसा समझा जाता है कि भोंसलोंके समयमें दूधाधारी महाराजने, प्रान्तमें वैष्णव परम्पराके प्रचारार्थ इसकी स्थापना की थी, राज्याश्रय भी इसे प्राप्त था। १२ गाँव माफ़ी थे । दूधाधारी आयुर्वेदके भी विद्वान् व सेवाभावी सन्त थे । तात्कालिक रायपुरकी सांस्कृतिक चेतनामें इनका प्रमुख भाग था। यहाँपर पुरातन ग्रन्थोंका अच्छा संग्रह है। इस मठका इतिहास भी स्फुट हस्तलिखित पत्रोंमें है, पर महन्तजीकी सुस्तीसे दबा हुआ है। राजीमके निकट धमनी ग्राम है, जहाँपर इस मठके पुरोहित रहते थे। इनके परिवारवालोंके पास पुरानी सनदें बहुत ही उपयोगी हैं। किन्तु न तो वे किसीको बताते हैं न स्वयं पढ़नेकी योग्यता ही रखते हैं। दूधाधारी मठके वर्तमान महन्त वैष्णवदासजी सरल स्वभावके हैं। श्री नन्दकुमार दानीके घरमें १८वीं शतीका एक लेख दीबार में लगा हुआ है। सुना जाता है कि प्रस्तुत लेख महामायासे सम्बन्धित है । बूढेश्वर महादेव मन्दिरके वटवृक्षके निम्न भाग में एवं एक मन्दिर में बहुतसे देव-देवियोंके आकार-सूचक शिल्प हैं, जिनमें
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