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________________ २३८ खण्डहरोंका वैभव रेखाएँ एवं जिस आसनपर मूर्ति आधृत है, उसका भाग भी उपर्युक्त प्रतिमाकी अपेक्षा पृथक् रेखाओंवाला है । मुख्य फाटक के फौवारे के सामने जैन प्रतिमाओंके अलग-अलग चार अवशेष रखे हैं, वे क्रमशः इस प्रकार हैं : ( १ ) प्रस्तुत खण्डित पाषाणपर सोलह जैन प्रतिमाएँ ११x१५ इंचकी शिलापर उत्कीर्णित हैं । निम्नस्थान खंडित है । अनुमानतः खंडित स्थानमें भी आठ खड़ी जैनप्रतिमाएँ अवश्य ही रही होंगी। प्रस्तुत शिलापट्टके प्रधान पार्श्वनाथ हैं । (२) चुनारकी २२ x २५ की शिलापर २४ जैन प्रतिमाएँ अंकित हैं । चार पंक्ति में पाँच-पाँच और उपरिभागमें चार इस प्रकार चतुर्विंशति पट्ट है। प्रतिमा- विधानकी दृष्टि से यह चतुर्विंशतिपट्टिका महत्त्वकी है । अंग - विन्यास बड़ा सुन्दर और भाव- दर्शक है । प्रायः सभीकी मुखाकृति थोड़े बहुत अंश में खंडित है जैसा कि चित्रसे स्पष्ट है। गुजरात में भी इस प्रकारकी प्रतिमाएँ बनती थीं, जिनके ऊपर के भागमें शिखराकृतियाँ मिलती हैं । (३) इस परिकर युक्त प्रतिमाका केवल मस्तक के ऊपरका भाग ही बच पाया है | त्रुटित भागकी मानवाकृतियोंसे पता चलता है कि निःसंदेह प्रतिमा बहुत ही सुन्दर और कलापूर्ण रही होगी । । 1 (४) इस प्रतिमाका केवल निम्न भाग और मस्तक अलग-अलग पड़े हैं । मेरे ख्यालसे (३) वाले उपरिभागका यह अंश निम्न अंश होना चाहिए । अनजान के लिए निम्न भागको देखकर शंका हुए बिना नहीं रहती कि प्रस्तुत अंशका संबंध किस धर्मसे है । बारीकीके साथ निरीक्षण करने से ज्ञात हुआ कि इसका सीधा संबंध श्रमण-संस्कृतिकी एक धारा जैन संस्कृति से है, कारण कि प्रतिमाके निम्न भागपर जो आकृतियाँ हैं, वे निर्णय करने में बहुत बड़ी मदद देती हैं। दक्षिण निम्न भाग में गोमुख यक्ष और बायीं ओर चक्रेश्वरीकी मूर्तियाँ हैं। मध्य में वृषभका चिह्न अंकित है। इससे प्रतीत Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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