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________________ २०४ खण्डहरोंका वैभव बारीकी से किया गया है। आभूषण सापेक्षतः छोटे होने के कारण कलाकारको कुशल छैन का परिचय दे रहे हैं, जैसा ऊपर कहा जा चुका है । दोनों ग्रासों के ऊपर चौकी है और चौकीपर चद्दरका छोर खुदा हुआ है। जिसपर जिन खड़े हुए हैं । व्यालके बायें - दायें यक्ष-यक्षिणी बहुत स्पष्ट एवं सुन्दर भावमुद्रा में उत्कीर्णित हैं । चतुर्मुखी यक्ष के दाहिने हाथमें दण्डयुक्त कमल एवं आशीर्वादिमुद्रा तथा बायें हाथ में बीजपूरक और परशुके समान एक शस्त्र है । गले में हार और कटि प्रदेश में करधनी ही मुख्य आभूषण हैं । जटाजूटकी ओर ध्यान देनेसे शैव प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है और यह स्वाभाविक भी है। कलचुरि और चन्देल वंश के राजा परम शैव थे और बुन्देलखण्ड तथा महाकोसल में शैव संस्कृति काफ़ी उन्नत रूपमें थी । अन्य पुरातन कलावशेषोंके निरीक्षणसे यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है । मूर्ति के बायें ओर सबसे नीचे यक्षिणी, यक्ष के समान ही आभूषणोंको धारण किये बैठी है । अन्तर केवल इतना ही है कि जहाँ यक्षके बायें हाथमें बीजपूरक हैं, वहाँ इसके बायें हाथमें कलश अवस्थित है । केश राशि भी शैव प्रभावसे युक्त है । वस्त्रोंकी रचना सुन्दर है । प्रस्तुत प्रतिमा पंचतीर्थी की है क्योंकि ऊपर-नीचे चारों ओर चार खड्गासनस्थ उत्कीर्णित हैं -- पार्श्वदोंकी उभय ओर एवं दो मूर्तिके उपरभागके छत्र के निकट | यक्षिणीके ऊपर एक खड़ी जिन मूर्तिके ऊपर एक रेखा सीधी गई है जिसमें निम्नलिखित विभिन्न अलंकरणोंका खुदाव कला एवं विविधताकी दृष्टि से आकर्षक एवं अपेक्षाकृत कुछ नूतनत्वको लिये हुए है। गुप्तकालीन स्तम्भों में जिस प्रकारकी बोझसे दबी हुई आकृतियाँ पाई जाती हैं, ठीक उन्हीं आकृतियोंका अनुकरण इस प्रतिमा में किया जान पड़ता है । दोनों हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं, जो स्पष्टतः इस प्रकार के हैं मानो कि ऊपरका वज़न संभालने में व्यस्त हैं । भुजाओंके ऊपरसे नागावलिकी रेखा स्पष्ट है इसीलिए सीना भी बाहर तन गया है जो इस बातका सूचक है कि व्यक्तिपर काफ़ी बोझ पड़ रहा है । ये कीचक कहे जाते हैं । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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