________________ .82 ज्योतिषसारः / स्तक पर, 4 नेत्र पर और 3 गुह्य पर, इस अनुकमसे स्थापित कर फल कहना " जैसा राहुबक कहा है वैसा केतुचक्र भी जानना " राहु मुख पर हों तो रोग, जिमना हाथ पर हो तो सुख पांव पर हो तो विदेश भ्रमण, हृदय पर हो तो बहुत श्वास खांसी हो, मस्तक पर हो तो राजदंड हो, नेत्र पर हो तो शत्रुका क्षय और गुह्य पर हो तो गृहमें कलह हो, यह राहु चक्र प्राचीन ज्योतिषीयोंने कहा हैं / / 282 से 285 / / चन्द्रावस्थापरवास न? मरणं, जय हासो रई य कीड निहा य। भुगत जरा कंपोयं, सुच्छिय बार सम ससि वच्छा / / 286 // घडि दह इग पल पनरस, गिणियं परवास रासि मेसाई। .. पणतीसा सउससि घडी, नाम परिणाम सरिस फलं / / 287 // इति श्री ज्योतिषसारे प्रथम प्रकोण कं समाप्तम् / . भावार्थ-प्रवास नष्ट मरण जय हास्य रति क्रीडा निद्रा भुक्त जरा कम और सुस्थित ये बारह चन्द्र अवस्था है, इनको लानेका प्रकार-सामान्यतया चन्द्र राशिका भोग 135 घडी है उसको बारहसे भाग देनेसे 3 घडी 15 पल होते हैं। इतने समय प्रत्येक अवस्था रहती है / मेषका चन्द्र हो तो प्रवाससे वृष का चन्द्र हो तो नष्ट से, मिथुनका चन्द्र हो तो मरणसे, एवं मोनका चन्द्र हो तो सुस्थितसे आरंभ कर बारह अवस्था गिनना और नाम सदृश फल कहना // 286 / 28 // ॥इति शुभम्।। वीरजिननिर्वाणान्दे, निध्युदधिजिने ( 2446 ) मिते। प्राधज्येष्ठे कृष्णपने, प्रतिपद्गुरुवासरे // 1 // श्रीसौराष्ट्रराष्ट्रान्तर्गत पादलितपुर निवासिना पं० भगवानदासाख्यजैनेन कृतास्य प्राकृतगाथाबद्धज्योतिषहीरे प्रथमप्रकीर्णस्य बालावबोधिका नाम्नी भाषादीका समाप्ता। कालिकातायाम् //