SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी भाषा - टीका समेतः 1 ७३ भावार्थ अपना जन्म राशिले-शुक्र सातवां बारहवां छा तीसरा और नववा हो तो सर्व कार्य नाश करे चौथा पांचवां आठवां और ग्यारहवां हो तो सुखकारी है || २४४ ॥ पहिला दूसरा I शनि शुभाशुभ - मन्दो इग दुग चउ लग, नवमो अड दसम बार सुह हरई । तीओ पण सड गारस, अत्थो लाभं च रविपुत्तो ॥ २४५ ॥ भावार्थ-अपना जन्म राशिले शनि- पहिला दूसरा सातवां आठवां नववां दशवां और बारहवां हो तो सुखका नाश करे। तीसरा पांचवां छुट्ठा और ग्यारहवां हो तो अर्थका लाभ चौथा 11 284 || राहु केतु शुभाशुभ - इग बिय ति पण सत्तम, अट्ठम नवमोइ बार राहु दुक्खं । चउरो सड़ दस गारस, राहो केऊ च सुहदाई ॥ २४६ ॥ भावार्थ--- अपना जन्म राशिसे राहु और केतु- पहिला दूसरा तीसरा पांचवां सातवां आठवां नववां और बारहवां हो तो दुःखदायी है । चौथा छट्ठा दशवां और ग्यारहवाँ हो तो सुखकारकः हैं ॥ २४६ ॥ नवग्रह राशि प्रमाण रवि मासं इग रासी, हवई दो दिवस सवा सिसियायं । मास दवड्ढ मङ्गल, बुद्धो रासीय दिन अढारं ॥ २४७ ॥ सुरगुरु तेरस मासं दीहा पणवीस सुकं संखायं । समि मास तिस भणिय, राहो मासं च अढारं ।। २४८
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy