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________________ हिन्दी भाषा-टोका समेतः। दायी है, नववां और दशवां सिद्धि कारक ग्यारहवां जयकारी, बारहवां मृत्यु कारक हैं ॥२३६-२३७ ।। ससि पढम तिय सड सग, दसमं इग्गार निश्च सुहदाई । तह धवलं बीय पण नव, चन्दो चउ अट्ट बार दुहयं ॥ ५३८ । __ भावार्थ-अपना जन्म राशिसे चन्द्रमा-पहिला तीसरा छट्ठा: सातवां दशवां और ग्यारहवां निश्चयसे सुखदायक है, एवं शुक्लपक्षमें दूसरा पाचवां और नवां भी सुखदायक है, चौथा आठवां और बारहवां सर्वदा दुःख कारक है ॥ २३८ ॥ चन्द्रवास फलछग सिंह धन पुब्बइ, मकरे विस कन्न दक्खिणे वासो। तुल कुम्भ मिथुन पश्चिम, उत्तरि ससि मीन अलि करके ।२३।। ससि सम्मुह धन लाहो, दाहिण करएहि सव्व संपइया । पुढेइ चन्द मरणं, वामं करएहि धण होणं ॥ २४० ॥ __ भावार्थ-मेष सिंह और धन राशिका चन्द्रमा पूर्व दिशा में, वृष कन्या और मकर राशिका चन्द्रमा दक्षिण दिशामें, तुला कुंभ और मिथुन राशिका चन्द्रमा पश्चिम दिशामें, मीन वृश्चिक और कर्क राशिका चन्द्रमा उत्तर दिशा में रहता हैं । सम्मुख चन्द्रमा हो तो धनका लाभ करे, दक्षिण तर्फ होतो सर्व सम्पत्ति देवे, पूठे हो तो मृत्यु करे और बांये तर्फ हो तो धन हानी करे ॥ २३६-२४०।।
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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