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हिन्दो भाषा-टोका समेतः ।
भावार्थ-प्रथम पांच घड़ी भद्रा का मुख है, पीछे एक घड़ी कंठ है एवं ग्यारह घड़ी हृदय, चार घड़ी नाभि, छ घड़ी कम्मर और तीन घड़ी पूच्छ है ; इस तरह भद्रा की तीस घड़ी के अंग विभाग है,उसका फल-मुख हानिकारक, कंठ मृत्युकारक, हृदय दारिद्रकारक, नाभि बुद्धिनाशकारक, कम्मर कलहकारक और पूच्छ बहुत जयकारी है। भद्रामें चन्द्रराशि गिनना ॥२०३-४
भद्रावासछग वसह मकर कके सग्गे, धण मिणहु कन्न तुल नागे । अलि सिंह कुंभ मीने, मानव लोगम्मि कल्लाणी ॥ २०५ ॥ सुरलोई सुहदाई, आगम सुह नाग मिश्च दुहदाई। तिजि सित छ घड़ी मुहाई, तिघड़ी तम पक्खि अताई ॥ २०६॥
भावार्थ--मेष वृष मकर और कर्क राशिके चन्द्रमा को भद्रा स्वर्गमें, धन मिथुन कन्या और तुला राशिके चन्द्रमाको भद्रा पाताल में, वृश्चिक सिंह कुंभ और मीन राशिके चन्द्रमा को भद्रा मानव लोकमें रहती है। स्वर्गमें भद्रा होतो सुखदायी है, पाताल में भद्रा होतो सुखका आगमन करने वाली होती है और मृत्यु लोकमें भद्रा हो तो दुःखदायी है। शुक्ल पक्षमें ६ घड़ी आदि की और कृष्ण पक्षमें ३ घड़ी अन्त्य की छोड़ना चाहिये इसका कारण नीचे बतलाते है। सित पक्खि सप्पिणीहि, पक्से किसणे हि विच्छकी भणिया। सप्पिणी मुहोइ परिहरि, पुच्छो विच्छीय तिजि भद्दा ॥२७॥