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________________ हिन्दी भाषा टीका समेतः । ५९ को पांचवां, और शनिवारको चौथा अर्द्धप्रहर कंटक संशक हैं ।। कर्कटयोग छिट्ठि भिगु सत्तम, अट्टमि गुरु बुध नवमी भू दसमी । ससि गारिसि रवि बारसि, तिहि वारं कक्कडायोगं ।। १७५ ।। भावार्थ - शनिवारको षष्ठी, शुक्रवार को सप्तमी, गुरुवार को अष्टमी, बुधवारको नवमी, मङ्गलवारको दशमी, सोमवार को एकादशी और रविवारको द्वादशी ये कर्कट योग हैं, वे शुभ कार्य में वर्जनीय है || १७५ ।। यमघंटयोग I मघ सूर ससि विसाहा, मंगल अद्दाइ बुध मूला यं । गुरु कित्ति सुक्क रोहिणी, सनि हत्था योग यमघंटं ॥ १७६ ॥ भावार्थ - रविवार को मघा, सोमवारको विशाखा, मंगलवारको आर्द्रार्श, बुधवारको मूल, गुरुवार को कृत्तिका, शुक्रवारको रोहिणी और शनिवार को हस्त नक्षत्र हो तो यमघंट योग होते हैं । Aariन्तर से अन्यग्रन्थों में ससि विसा अस्सणि, बुद्धो मूलाइ अद्द पूफायं ! सुरगुरु कित्तिग सवणं, सूरो मघ योग यमघंट ॥ १७७ ॥ भूमो मघ अद्दा यं, सुक्को साईहि रोहिणी रिसि 1 मन्दोइ हत्थ रेवय, पूषा उषाइ यमघंटं ॥ १७८ ॥ भावार्थ- सोमवार को विशाखा और अश्विनी, बुधवारको मूल आर्द्रा और पूर्वाफाल्गुती, गुरुवारको कृतिका और श्रवण,
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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