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ज्योतिषसारः ।
रवि योग
रवि रिक्ख लेइ दिन रिक्ख, गिणहु चड छट्ठ नव दस तेरे । वीसम ए रवियोगा, सिह ईय सव्व जोगाई ॥ १४२ ॥ इक्क सिह किसोयर, गय घड भन्न ति तस्स कोडीओ 1 रविजोग सय पलाणा, गयणस्मि गया न दीसन्ति ॥ १४३ ॥ भावार्थ - सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र पर्यन्त गिनना जो४ । ६ । ६ । १० । १३ । २० इन्हीं में से कोई संख्या हो तो रवि योग होता है। यह सभी योगों में श्रेष्ठ माना गया है जैसे-सिंह का बच्चा मदोन्मत हाथी का कुभस्थल को तोड़ देता है ऐसे एकही रवियोगके उदयसे सेंकड़ों कुयोग अस्त हो जाते है सो दिखते भी नहीं । इन रवियोग का फल आरम्भ सिद्धिकी टीका में कहा है कि “एआण फलं कमलो, विउलं सुक्खं ४ जयं च सन्तृणं ६ | लाभं ६ च कज्ज सिद्धि १०, पुत्तुप्पत्ती अ १३ रज' च २० ।। १ ।। ” इन रवियोग का फल अनुक्रम से जान लेना; जैसे-४ संख्या हो तो सुख, ६ हो तो शत्रुका नाश, ६ हो तो लाभ, १० हो तो कार्य सिद्धि, १३ हो तो पुत्रोत्पत्ति का लाभ और २० हो तो राज्य सुख मिले इत्यादि ॥ २४२ ॥ १४३ ॥
राज योग
'तिया पुन्निम भद्दा, भू बुध रवि सुक्क पुक्ख मिग भरणी । पूफा पूसा ऊभा, चित्ता अणु घणि निवजोगा । १४४ ॥ गृहप्रवेशों मैत्री व विद्यारम्भादिसत्क्रिया ।
राजपट्टाभिषेकादि, राज योगे ऽभिधीयते ॥ १४५ ।।