SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी भाषा टीका समेतः । 9. कन्नाइ तीय पच्छिम, धण तीयाइ उत्तरे सूरो ।। १३२. भावार्थ- मीनादि तीन राशि को पूर्वदिशामें मिथुनादि तीन राशि को दक्षिण दिशा में कन्यादि तीन राशि को पश्चिम दिशामें ओर धनादि तीन राशि को उत्तर दिशामें सूर्य का बास है ॥ १३२ ॥ दिशा विदिशा में रवि प्रहर प्रमाण अग्गी दक्खणि नेरय, पच्छिम वाइव्व उत्तर ईसाणे 1 पूव्वे हि अड दिसय, वसए रवि पुहर अणुक्कमसो ॥ १३३ ॥ भावार्थ- अग्नि दक्षिण नैर्ऋत पश्चिम वायव्य उत्तर ईशान और पूर्व ये आठों ही दिशामें अनुक्रमसे एक एक प्रहर रवि रहता है ॥ १३३ ॥ ३६ रवि फल गमणेहि सूर दाहिण, पुरी पवेलेइ वामउ सुक्लं । लाहोर सुर संमुह, पुट्ठो भाणोइ दुह कीरइ ॥ १३४ ॥ न तित्थं न रिक्खं, न सिसं भद्दा वाराइ न वितीपात । सव्वे कल समारइ, सुपसन्नो हवइ सूरो ॥ १.३५ ॥ भावार्थ- दक्षिण सूर्य हो तो गमन करना, बांये तरफ हो तो नगर प्रवेश करना सुखकर है । समुख सूर्य हो तो लाभ दायक होता हैं और पूठे रवि हो तो दुःख कारक है । तिथि नक्षत्र चंद्रबल भद्रा वार और व्यतिपात इत्यादिक का दोष नहीं. देखना, क्योंकि एक ही सूर्य शुभ हो तो सर्व कार्य प्रारंभ करने स सिद्ध होते हैं ॥ १३४ ॥ १३५ .
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy