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________________ हिन्दी भाषा टीका समेतः । बुध और मंगलवार नक्षत्र को, - त्याग करना ॥ १२२ से १२५ ॥ को उत्तर दिशामें शूल है उसको नक्षत्र दिशा शूल कुत्रे असलेस मघा, फुवाषाढम्मि रोहिणी सूलं । दक्खिण चित्त विसाहा, अस्सणि भरणी य रिसि चउरो ॥ १२६ ॥ पच्छिम रोहिणी सवणं, मूलो पुक्खाइ रिक्स चड सूलं । उफाइ हत्थ रेवइ, उत्तर दिसि वजप गमणं ॥ १२७ ॥ भावार्थ- पूर्वदिशामें आश्लेषा मघा पूर्वाषाढा और रोहिणी को शूल है, दक्षिण दिशामें चित्रा विशाखा अश्विनी और भरणो को शूल है, पश्चिम दिशा में रोहिणी श्रवण मूल और पुष्य ए चार नक्षत्र को शूल है और उत्तर दिशामें उत्तराफाल्गुनी हस्त और रेवती नक्षत्र को शूल है, थे गमन में त्याग करना ॥ १२६ ॥ १२० ॥ वार दिशा शूल --- वारेहिं गुरु दक्खणि, उत्तरि बुध भोम पुव्वि सनि सोमं । सुक्क रखे पच्छिमय, सूलं दिलिप य वजाइ ॥ १२८ ॥ भावार्थ -- गुरुवार को दक्षिण दिशामें, बुधवार और मङ्गलवारको उत्तर दिशामें, शनिवार और सोमवार को पूर्व दिशा में शुक्रवार और रविवारको पश्चिम दिशामें शूल है ये गमनमें / त्याग करना ॥ १२८ ॥ विदिशा शूल अगनेय सोम सुरगुरु, नेरय भिगु सूर वाई भूमेहिं ।
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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