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________________ हिन्दी भाषा - टीका समेतः । २५ . प्रकारान्तरे पुरुषके बारह वाहन- गय वसह महिस हंसो, साणो वाइस्ल हंस छग खरयं । जंबूग णाई गरुडं, वाहण ससि रिक्ख नररिक्खा ॥ ८० ॥ “चन्द्र नक्षत्र हुंती नरने नक्षत्र गिणता आवीइ नाम सरि फल विचारी ॥ भावार्थ- चन्द्रनक्षत्र से पुरुष नक्षत्र तक गिनने से जो संख्या होवे उसको बारह से भाग देना, जो शेष बचे वे वाहन जानना, उन के नाम - गज, वृषभ, महिष, हंस श्वान, वायस (काग), हंस, छाग (मेष), स्वर, जंबूक, नाग और गरुड । उसका फल नामसदृश जानना ॥ किंचित् स्वर ज्ञान चंद्रनाडीफल गमणेइ गिहपवेसे, वत्थुसंगहणे सामि दंसणे य । सुहकम्मि धम्मकारणं, वामा ससिनाडी सुह भणिया ॥ ८१ ॥ भावार्थ - गमन ( देशाटन ) में, गृह प्रवेशादिमें, वस्तु संग्रह में, स्वामी दर्शन में, शुभ कार्यमें और धर्म कार्यमें चन्द्रनाडी शुभ जानना ॥। ८१ । सूर्यनाडीफल - संगाम खुद्दकामे, विजारंभो विवाय विवहारं । भोयण सुरयप्पसंगे, दाहिण रविनाडि सुह भणिया ॥८२॥ भावार्थ- संग्राम शुद्रकार्य विद्यारंभ विवाद व्यवहार भोजन
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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