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का०
ज्योतिषसारः। ४ रो० ला० शु० च०. का. ५ का० उ० अ० रो० ला. ६ ला० शु० च० का० उ० अ० ७ उ० अ० रो० ला० शु० च. ८. शु० च० का० उ० अ० रो० ला. ६ अ० रो० : ला० शु० च. का० १० ३० का० उ० अ० रो० ला० ११ रो० ला० . शु० १२ का० उ० अ० रो० ला० शु० च.
सिद्धछाया लग्नससि सुक्क सनी साढं, अड पाया नव भूमे य अड बुद्धे । रवि एगारस सग गुरु, तणु छाया मिण हु भूमि सुद्ध ॥ ३२ ॥
भावार्थ-सोमवार शुक्रवार और शनिवार को साढे आठ, मंगलवार को नव, बुधवारको आठ, रविवारको ग्यारह, गुरुवार को सात पाँव अपने शरीर की छाया हो तो उस समय शुभ लग्न जानना। इस छाया लग्नसे शुभ लग्नका अभावमें भी गमन प्रवेश प्रतिष्ठा दीक्षा आदि शुभ कार्य करना ऐसा विद्वानों का मत है ॥ आरम्भ सिद्धि आदि ग्रन्थों में कहा है कि
"सुहग्गह लग्गा भावे, विरुद्ध दिवसेऽवि तुरिअ कजम्मि । गमण पवेस पइट्ठा-दिक्खाई कुणसु इत्थ जओ ॥ १ ॥ एसं बुहे हि कहियं, छाया लग्गं धुवं सुहे कज्जे । सुह सउण निमित्त बलं, जोइसु पर सुलग्गेऽवि ॥२॥"