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भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
अष्टवर्ग- शीतल, मधुर, धातुओं को पुष्ट करनेवाला, वीर्यवर्धक, भारी, टूटे हुएको जोडनेवाला, काम, कफ तथा बलको बढानेवाला, तथा वात, पित्त, रक्तविकार, प्यास, दाह, ज्वर, प्रमेह तथा क्षयको नष्ट करता ॥ १२०-१३२ ॥
जीवकर्षभयोरुत्पतिर्लक्षणं नाम गुणाः ।
जीवकर्षभको ज्ञेयौ हिमाद्रिशिखरोद्भवौ । रसोनकंदवत्कंदो निस्सारौ सूक्ष्मपत्रकौ ॥ १२३ ॥ जीवकः कूचिकाकारः ऋषभो वृषशृंगवत् । जीवको मधुरः शृङ्गी ह्रस्वांगो कूचशीर्षकः ॥ १२४ ॥ ऋषभो वृषभो धीरो विषाणी द्राक्ष इत्यपि । taarat बल्यौ शीतौ शुक्रकफप्रदौ ॥ १२५ ॥ मधुरौ पित्तदाहास्रकार्श्यवातक्षयापहौ ।
जीवक और ऋषभक यह दोनों हिमालयपर उत्पन्न होते हैं । रखोन ( लहसुन ) कन्दकी तरह यह दोनों कन्द साररहित और सूक्ष्म पत्तोंवाले होते हैं जीवक कूचीके आकारवाला तथा ऋषभक बैलके सींग के आकारवाला होता है । जीवक, मधुर, श्रृंगी, ह्रस्वांग, कूचंशीर्षक यह जीवके नाम हैं । ऋषभ, वृषभ, धीर, विषाणी, द्राक्ष यह ऋषभक के नाम हैं। जीवक और ऋषभक- बलवर्द्धक, शीत, वीर्य तथा कफको बढानेवाले, मधुर तथा पित्त, दाह, रुधिरविकार, दौर्बल्य, वात तथा क्षयको हरनेवाले हैं ॥ १२३ - १२५ ॥
मेदामहादयोः ।
महामेदाभिधः कंदो मोरंगादौ प्रजायते ॥ १२६ ॥ महामेदावन मेदा स्यादित्युक्तं मुनीश्वरैः । शुष्काकनिभः कंदो लताजानः सपांडुरः ॥१२७॥ महामेदाभिधो ज्ञेयो मेदालक्षणमुच्यते । शुक्ककंदो नखच्छेद्यो मेदो धातुमिव स्रवेत् ॥ १२८॥