________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । (२७) फारसीमें बवाशीर और अंग्रेजीमें The Siliceus Concreotion करते हैं।
वंशलोचन-शरीरकी धातुओंको पुष्ट करनेवाली, वीर्यवर्धक, बलवर्धक, मधुर, शीतल तथा तृष्णा, (प्यास) खांसी ज्वर, श्वास, क्षय, पित्त, रक्तविकार, कामला, कुष्ठ, व्रण, पाण्डुरोग इन रोगोंको हरनेवाली कसैली तथा वायु और कृच्छको जीतनेवाली है । ११५-११८ ॥
सगुद्रफेनः।
समुद्रफेनः फेनश्च डिंडीरोब्धिकफस्तथा समुद्रफेनश्चक्षुष्यो लेखनः शीतलश्च सः ॥ ११९ ॥ कषायो विषपित्तघ्नः कर्णहक्कफहल्लघुः । समुद्रफेन, फेन, डिण्डीर, अब्धिकफ यह समुद्रफेनके नाम हैं। इसको हिन्दीमें समुद्रझाग, फारसीमें कफेदरया और अंग्रेजीमें Catilefish bone कहते हैं ।
समुद्रफेन-नेत्रोंके लिये हितकारी, लेखन, शीतल, कषाय, विष और पित्तको नष्ट करनेवाली, कर्णरोग और कफको हरनेवाली तथा हलकी है ॥ ११९॥
अष्टवर्गः।
जीवकर्षभको मेदे काकोल्या ऋद्भिवृद्धिके ॥१२०॥ अष्टवर्गोऽष्टभिर्द्रव्यैः कथितश्चरकादिभिः । अष्टवर्गो हिमः स्वादु बृंहणः शुक्रलो गुरुः ॥१२१॥ भनसन्धानकृत्कामबलसंबलवर्द्धनः। वातपित्तास्रतृड्दाहज्वरमेहक्षयापहः ॥ १२२ ॥ जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धि और वृद्धि इन पाठोंको चरकादि ऋषियों ने अष्टवर्ग कहा है।