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(२२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
मेथी-वातको शमन करनेवाली, कफको नष्ट करनेवाली तथा ज्वरनाबक है। वनमेथी इसकी अपेक्षा थोडी गुणोंवाली है, यह घोडोंके लिये परमोत्तम है ॥ ९३-९५॥
चंद्रशूरम् । चंद्रिका चर्महंत्री च पशुमेहनकारकः।। नंदनी कारवी भद्रा वासपुष्पा सुवासरा ॥१६॥ चंद्रशूरं हितं हिकावातश्लेष्मातिसारिणाम् । असृग्वातगदद्वेषि बलपुष्टिविवर्धनम् ॥ ९७ ॥ चंद्रिका, चर्महन्त्री, पशुमेहनकारक, नन्दनी, कारवी, भद्रा, वासपुष्पा, सुवासरा, यह चंद्रशूरके संस्कृत नाम हैं. इसे हिन्दीमें हाली हालिम्, फारसीमें हालम तुरुमे तरातेजक, अंग्रेजीमें Common Cress कहते हैं।
चंद्रशूर-हिचकी, वात-कफ, रुधिर तथा वातव्याधियोंमें हितकारी है। तथा बलकारक्ष और पुष्टि करनेवाला है ॥ ९६ ॥ ९७ ॥
चतुर्बीजम्। मेथिका चंद्रशरश्च कालाजाजी यवानिका । एतचतुष्टयं युक्तं चतुर्बीजमिति स्मृतम् ॥ ९८॥ तच्चूर्ण भक्षितं नित्यं निहंति पवनामयम् ।
अजीर्णशूलमाध्मानं पार्श्वशूलं कटिव्यथाम् ॥९९॥ मेथी, हालो, कालाजीरा और अजवायन इन चारोंको चतुर्बीज (चारदाना ) कहते हैं । चतुर्बीजका चूर्ण नित्य खाया हुमा वायुके रोग, अजीर्ण, शूल, अफारा, पसलीका शूल और कमरकी वेदना इनको नष्ट करता है ॥ ९८ ॥ ९९ ॥
हिंगु । सहस्रवेधि जतुकं बाह्रीक हिंगु रामठम् ।
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