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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी . ।
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अग्निमांद्य द्या बद्ध विकृमिशुक्रहृत् । रूक्षोष्णापाचनीका सवमिश्लेष्मा निलान् हरेत् ॥ ९२ ॥
शतपुष्पा, शताह्वा, मधुरा, कारवी, मिली, प्रतिलम्बी, खितच्छत्रा सहितच्छत्रका, छत्रा, शाळेय तथा शालीन यह सौंफ के संस्कृत नाम हैं, हिन्दी में इसे सौंफ कहते हैं, फारसी में बादियान, अंग्रेजीमें Fennel Seed कहते हैं ।
मिश्रया, मधुरा और मिलि यह सोयाके संस्कृत नाम हैं । इसको हिन्दी में सोया फारसी में तुख्में शूत, अंग्रेजीमें Dill Seed कहते हैं ।
सौंफ - हलकी, तीक्ष्ण, पित्तवर्धक अग्रिदीपक, कटु, गरम तथा ज्वर वायु, कफ. व्रण शूद्ध और नेत्ररोगोंको नष्ट करती है। सोयेके भी ऐसे ही गुण हैं परन्तु सोया विशेषतासे योनिके शूलको हरनेवाला, अग्निदीपक, हृदयको हितकर, मलको बान्धनेवाला, कृमि तथा वीर्यको हरनेवाला, रूखा, गरम, पाचक तथा काल, वमन, कफ और वातको नष्ट करनेवाला है ।। ८९-९२ ॥
मेषिका वनमेथिका ।
मेथनी 'मेथिका मेथी दीपनी बहुपत्रिका | बोधनी बहुबीजा च जातीगंधफला तथा ॥ ९२ ॥ वरी चन्द्रिका मंथा मिश्रपुष्पा च कैरवी । कुंचिका बहुपर्णी च पीतबीजा मुनिच्छदा ॥९४॥ मेथिका वातशमनी श्लेष्मघ्नी ज्वरनाशिनी । ततः स्वल्पगुणा वन्या वाजिनां सा तु पूजिता ॥ ९५ ॥
मेथिका, मेथी, मेथी, दीपनी, बहुपत्रिका, बोधनी, बहुबीजा, जातिगंधफला, वल्लरी, चन्द्रिका, मन्था, मिश्रपुष्पा, कैरवी, दुःखिका, बहुपर्णी, पीतबीजा तथा मुनिच्छदा यह मेथी के संस्कृत नाम हैं। हिन्दी में Aho! Shrutayanam इसे मेथी, फारसी में तुख्मे शमपीत, षग्रेजीमें Fennyreek कहते हैं ।