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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.
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जब सिकजाय तब निकाल ले इसको शष्कुली ( खस्तापूरी ) कहते हैं इसमें केवी के सदृश गुण हैं ॥ ११४ ॥
अथ सेविकामोदकः ( सेवके लड्डू ) ।
घृताढ्यया समितया कृत्वा सूत्राणि तानि तु । निपुणो भर्जयेदाज्ये खण्डपाकेन योजयेत् । युक्तेन मोदकान्कुर्य्यात्ते गुणमैडका यथा ॥ ११५ ॥
वृतयुक्त मैदा के सेव बनाकर बीमें सेक लेवे और खाँडकी चासनीमें डालके लड्डू बनायले, इन लड्डुयोंमें भी मंडक के सदृश गुया हैं ॥ ११५ ॥ अथ मुक्ता मोदकाः ( बूँदी के लड्डू ) ।
मुद्वानां धूमसीं सम्यग्घोलयेन्निर्मलाऽम्बुना । कटाहस्थघृतैरूर्ध्व झझरं स्थापयेत्ततः ॥ ११६ ॥ धूमसीन्तु द्रवीभूतां प्रक्षिपेज्झझरोपरि । पतन्ति दिवस्तस्मात्तान्मुपक्कान्समुद्धरेत् । सितापाकेन संयोज्यकुर्याद्धस्तेन मोदकान् ॥ ११७ ॥ लघुग्राही त्रिदोषघ्नः स्वादुः शीतो रुचिप्रदः । चक्षुष्यो ज्वरद्वल्यस्तर्पणो मुमोदकः ॥ ११८ ॥ मूंगकीं धूमसीको जल में घोलकर बीकी भरी हुई कढाईमें बड़े बड़े छेदवाली झर्झर में उस सनी हुई मूँग की धूमसीको झाडदेवे तो उसकी छोटी छोटी बूंद कढाईमें पडेंगी उनको सिकनेपर निकालले और चासनी में डालकर हाथसे लड्डू बनावे | बूंदी के लड्डू-हलके, ग्राही, त्रिदोषना शक, स्वादिष्ठ, शीतल, रुचिकारक, नेत्रोंको हितकारी, म्वरनाशक, बढदायक और तृप्तिकारक हैं ।। ११६-११८ ॥
अथ बेसनमादकः ( मोतीचूर के लड्डू ) । एवमेव प्रकारेण कायी बेसनमोदकाः ।
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