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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
अथ यवरोटिका |
यवजा रोटीका रुच्या मधुरा विशदा लघुः । मलशुक्रानिलकरी बल्या हंति कफामयान् ॥ ३२ ॥
जौकी रोटी-रुचिकारी, मधुर, विशद हलकी, मल, वीर्य तथा वातकारक, बलकारी और ककसम्बन्धी रोगोंकोट करती है ॥ ३२ ॥ अथ माष- ( उरदकी) रोटिका ।
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भाषाणं दालयस्तोये स्थापितस्त्यतकंचुकाः । आतपे शोषिता यंत्रे पिष्टास्ता धूमसी स्मृता ॥ ३३ धूमसी रचिता चै प्रोक्ता झर्झरिका बुधैः । झर्झरी कफपित्त किंचिद्रातकरी स्मृता ॥ ३४ ॥
उडद की दालको पानी भिजोकर छिलके निवाल देवे पश्चात धूममें सुखाकर लक्की में पिसवावे, उस धूमपी कहते हैं, धूमसो की बनाई हुई रोटी : संस्कृत में झर्झरी इत हैं, यह रोटी कफ, पित्तनाशक और क्रिचित वातकारक है ॥ ३३ ॥ ३४ ॥
अथ चणक-- ( चनेकी ) गेटिका ।
चणक्या रोटिका रूक्षा श्लेष्म पित्तास्रनुगुरुः ।. विष्टंभिती न चक्षुष्यातगुणा चाप शष्कुली ३५॥
चनेकी राटी-खी, विटम्भकारक, गरी, नेवाको हितकारी नहीं और कफ, पित्त, तथा रक्तविकारनाशक है। इनकी पूरीमें भी यही गुण हैं ॥ ३५ ॥
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अथ पिष्टिका । दालिः संस्थापिता तोये ततोs? हृतकंचुका । सिला साधु संपिष्टा पिष्टिका कथिग बुधैः ३६॥
दालको पानी में भिगा भीजनेवर छिलके निहाल डाले, पश्चात् शिलापर खूब पीसले इसकी पिष्टिका (पिटु ) कहते हैं ॥ ३६
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