________________
(४००) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। तथा पित्तनाशक, स्निग्ध, कफकारक, भारी रुचिकारी और अत्यन्त तृप्तिकारक ॥२६॥२७॥
अथ रोटिका ( रोटी शुष्कगोधूमचूर्णेन किंचित्पुष्टाश्च पोलिकाम् । तप्तके स्वेदयेत्कृत्वा भूयंगारेश्च तां पचेत् ॥२८॥ सिद्धषा रोटिका प्रोक्ता गुणं तस्याः प्रचश्महे । रोटिका बलकृद्रुच्या बृंहणीधातुवर्द्धनी। वातघ्नी कफकृद् गुर्वी दीप्तानीनां प्रपूजिता ॥२९॥ सूखे गेहूँके चूनमें पानी डालकर माण्ड ले और बेनकर तपेपर सकार फिर नीचे अंगारोंपर सेंके जब भली भाँति सिक जाय तब रोटिका (रोटी) कहाती है।
रोटिका (रोटी)-बलकारक, रुचिकारी, पुष्टिकारक, धातुवर्द्धक, वातनाशक, कफकारी, भारी और जिनकी भग्नि प्रदीप्त है उनको हित. कारी है॥२८॥ २९॥ ,
अथ अंगारकर्कटी (वाटी)। शुष्कगोधूमचूर्णन्तु सांबु गाढं विमर्दयेत् । ' विधाय वटकाकारं निधूमेऽनो शनैः पचेत् ॥३०॥ अङ्गारकर्कटी ह्येषा बृहणी शुक्रला लघुः । दीपनी कफद्धल्या पीनसश्वासकासजित् ॥ ३५ ॥ सूखे हुए उनम गेहूँके चुनको मांडकर हाथों से गोल गोल लोई बनाले और धूमरहित मन्द म द पग्निसे पकावे, अब भली भाँति मिड रो जाय तो उसको अंगारकर्कटी (वाटी) कहते हैं । वाटी पुष्ट हारक, वीर्यक और पीनस, बास तथा खासीको नष्ट करती है॥ ३० ॥ ३१ ॥