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(३५२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। उनको संधानरीतिसे जलमें भिगोदे तो उस पानीको सौवीर कहते हैं। किन्हीं प्राचार्योंके मतमें गेहूँ को पूर्वोक्त रीतिसे डालनेसे सौवीर बनता है। सौवीर-ग्रहणी, अश और कफको नष्ट करनेवाला, भेदन तथा उदा' वर्त, अंगमर्द, भस्थिशूल और पानाह इनमें दिया हुआ हितकारी होता है ॥ ८ ॥ ९॥
आरनालं तु गोधूमैरामैः स्यानिस्तुषीकृतैः । पक्वैर्वा संधितैस्तत्तु सौवीरसदृशो गुणः ॥ १०॥ करची अथवा पक्की गेहूं की तुष उतारकर संधान रीतिसे जल में भिगोदे तो उस जळको प्रारनाल कहते हैं । और वह गुणोंमें सौवीरके समान है ॥१०॥
धान्याम्लं शालिचूर्णाच्च कोद्रवादिकृतं भवेत । धान्याम्लं धान्ययोनित्वात्प्रीणनं लघुदीपनम् ११॥
अरुचौ वातरोगेषु सर्वेष्वास्थापने हितम् । चावलोंके अथवा कोदोंके चनके द्वारा संघानकी रीतिसे जो पानी बने उसको धान्याम्ल कहते हैं। धान्याम्ल-कांजी धान्योंसे उत्पन्न होनेके कारण तृप्तिकारक, हल्की, दीपन तथा अरुचि और सब किसमकी पास्थापनवस्ति करने में हितकारी है ॥ ११ ॥
शंडाकीराजिकायुक्तैः स्यान्मूलकदलद्रवः ॥ १२॥ सर्षपस्वरसैर्वापि शालिपिष्टकसंयुतैः । शण्डाकी रोचनी गुर्वी पित्तश्लेष्मकरी स्मृता॥१३॥ राई और मूलीके पत्तोंको अथवा रसोंके सस्थरस और चावलोकी पिट्टीको यदि सन्धान रीतिसे भिगोया जाय तो इनके जनको शंडाकी कहते हैं । शंडाकी-रोचन, भारी तथा पित्त और कफको करती है। १२ ॥ १३ ॥ कंदमूलफलादीनि सस्नेहलवणानि च । यत्र द्रवेऽभिषूयते तच्छुक्तमभिधीयते ॥ १४ ॥