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(३५०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
यथायथा स्यान्नमल्यं मधुरत्वं यपायथा ॥३४॥ स्नेहलाघवशैत्यानि सरत्त्वं च तथातथा।
इति इक्षुवर्गः। सीतोपला अर्थात मिश्री-दस्तावर, हलकी, शीतल तथा वातपित्तनाशक है।
मधुसे उत्पन्न हुई शर्करा-रूत, कफ-पित-नाशक, भारी, कसैली, शीतल तथा छ, अतिसार, तृष्णा, दाह और रक्तविकारोको दूर करती है।
खाण्ड और शर्करा जितनी निर्मक और मधुर अधिक होती है उसमें उतना ही हलकापन, स्नेह और शैत्य अधिक होता है ।। ३३ ॥ ३४ ॥ इति श्रीवद्यरत्नपंडितरामप्रसादात्मविद्यालंकारश्रीशिवशर्मकृतशिवप्रका
शिकाभाषायां हरीतक्यादिनिवग्टो इचवर्गः ॥ १९ ॥
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संधानवर्गः २०.
संधित धान्यमंडादि कांजिकं कथ्यते जनः। कांजिकं भेदि तीक्ष्गोष्णं रोचनं पाचनं लघु ॥१॥ दाहज्वरहरं स्पर्शात्पानाद्वातकफापहम् । माषादिवटकैर्युक्तं क्रियते तद्गुणाधिकम् ॥२॥ लघु वातहरं तत्तु रोचनं पाचनं परम् ।
शुलाजीर्णविबंधामनाशनं वस्तिशोधनम् ॥ ३ ॥ मुख बन्द करके किसी पात्र में रखे हुए धान्य मण्डादिको काजी करते हैं। काजी-भेदन, तीक्षण, उपप, रोचन, पाचन, हल्की, स्पर्श करनेने दाह और ज्वरको नष्ट करनेवाली और पीनेसे वास तथा कफकोहरती हैं। उडदोंके पडोसे युक्त कांनी अधिक गुणवाली, हस्की, वासनायक,