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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.
( ३१० )
पुरुष इनको तथा जो भूख से सर्वदा अत्यन्त हितकारी है ॥
प्रथवा मैथुन से कृश हो गये हैं, उनको १-५ ॥
गोदुग्धम | गव्यं दुग्धं विशेषेण मधुरं रसपाकयोः ॥ ६ ॥ शीतलं स्तन्यकृत स्निग्धं वातपित्तास्रनाशनम् । दोषधातुमलस्रोतः किंचित्क्लेदकरं गुरु ॥ ७ ॥ जरासमस्तरोगाणां शांतिकृत्सेविनां सदा । कृष्णाया गोर्भवं दुग्धं वातदारि गुणाधिकम् ॥ ८॥ पीताया हरते पित्तं तथा बातहरं भवेत् । श्लेष्मलं गुरु शुक्काया रक्ताचित्रातिवातं ॥ ९ ॥ बालवत्सविवत्सानां गवां दुग्धं त्रिदोषकृत् । बष्कयिण्यास्त्रिदोषघ्नं तर्पणं बलकृत्पयः ॥ १० ॥
गाय का दूध-रस और पाक में अत्यन्त मधुर, शीतल, स्तनोंमें दूधको बढानेवाला, स्त्रिग्ध, वात पित्त तथा रक्त विकारको नष्ट करनेवाला, दोष धातु मन तथा नाडियोंको किंचित् गीला करनेवाला तथा बुढापेके सब रोगोंको शमन करनेवाला है । काली गायका दूध-वातको हरनेवाला तथा गुणों में अधिक है । पीली गायका दूध पित्त तथा वायुको हरता है तथा श्वेत गायका दूध भारी बौर कफकारक और लाल तथा चितकवरी गाय का दूध वातको अत्यन्त हरनेवाला है । जिल गायका बछडा छोटा हो अथवा मर गया हो उसका दूध त्रिदोषकारक होता है । वणी ( वाखरी ) गायका दूध - त्रिदोषनाशक तृप्तिकाश्क तथा बलवर्धक होता है ।। ६-१० ॥
देशविशेषेण श्रेष्ठयम् ।
जांगलानूपशैलेषु चरंतीनां यथोत्तरम् । पयो गुरुतरं स्नेहं यथाहारं प्रवर्तते ॥ ११ ॥
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जो गायें जांगल तथा अनूप देश में और पर्वतमें चरती हैं उनका दूध