________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.
दुग्धवर्गः ११.
(३०९)
दुग्धम् ।
दुग्धं क्षीरं पयः स्तन्यं बालजीवनमित्यपि । दुग्धं समधुरं स्त्रिग्धं वातपित्तहरं परम् ॥ १ ॥ सद्यः शुक्रकरं पीतं सात्म्यं सर्वशरीरिणाम् । जीवनं बृंहणं बल्यं मेध्यं वाजिकरं परम् ॥ २ ॥ वयःस्थापनमायुष्यं संधिकारि रसायनम् । विरेकवांतिवस्तीनां तुल्यमोजो विवर्द्धनम् ॥ ३ ॥ जीर्णज्वरे मनोरोगे शोषमूच्छी भ्रमेषु च । ग्रहण्यां पांडुरोगे च दाहे तृषि हृदामये ॥ ४ ॥ गर्भस्रावे च सततं हितं मुनिवरैः स्मृतम् । बलवृद्धक्षतक्षीणक्षुद्व्यवाय कृशाश्च ये ॥ ५ ॥ तेभ्यः सदातिशयितं हितमेतदुदाहृतम् ।
दुग्ध, क्षीर, पय, स्तन्य तथा बालजीवन यह दूधके नाम हैं । दूधको फारसी में शीर और अंग्रेजीमें milk कहते हैं । दूध-मधुर, स्निग्ध, वातपित्तको हरनेवाला, वी को जल्दी उत्पन्न करनेवाला, सर्व प्राणियों के किये हितकर, जीवनदायक, पुष्टिकारक, बल तथा बुद्धिको बढानेवाला, वाजीकरण, वायुको स्थापन करने वाला तथा बढानेवाला जोडने शाळा: रसायन और विरेचन, वमन और वस्तिक्रियावालोंके लिये हितकारी तथा प्रोजको बढानेवाला है । जीगंज में, सबके रोग में, शोष, मूर्छा तथा भ्रम, ग्रहणी में पाण्डुरोग में, दाइनें तृषमें, हृदय के रोग में दूध अत्यन्त हितकर है यह मुनियोंने कहा है ।'बालक, वृद्ध, क्षतशेगवाना, क्षीप
,