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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२८७)
कंदशाकम् । सूरणम् । सूरणः कंद औलश्च कण्डूलोर्शोघ्न इत्यपि । सूरणो दीपनो रूक्षः कषायः कण्डुकृत्कटुः ॥ ९२ ॥ विष्टंभी विशदो रुच्यः कफाशकृन्तनो लघुः । विशेषादर्शसां पथ्यः प्लीहगुल्मविनाशनः ॥ ९३॥ सर्वेषां कन्दशाकानां सूरणः श्रेष्ठ उच्यते । दद्रूणां रक्तपित्तानां कुष्टिनां न हितो हि सः ॥१४॥ संधानयोगं संप्रातः मुरणो गुणकृत्परः । सूरण, कन्द, प्रौल, कन्डूल, अर्शोघ्न यह जिमिकंदके नाम हैं। सुरणकन्ददीपन, रूक्ष, कषाय, खाजकारक , कटु, विष्टम्भी, विशद, रुचिकारक, कफ और अर्शनाशक और हल्का होता है । जिमिकन्द-बबासीरमें विशेषरूपसे पथ्य है । जीहा और गुलमको लाश करता है । और सब कन्द-शाकोंमें श्रेष्ट माना जाता है । परन्तु दद्रु रोगवालेको, रक्तपित्तवाले और कुष्ठियोंको यह बानिकारक होता है। सूरणकन्दकी काजी विशेष गुणकारी होती है॥९३-९४ ॥
अलुकम् । आरुकं वीरसेनं च वीरं वीरारुकं तथा ॥ ९५॥ आलुकं शीतलं सर्व विष्टभि मधुरं गुरु । सृष्टमूत्रमलं रूक्षं दुर्जरं रक्तपित्तनुत् ॥ ९६ ॥ कफानिलकरं बल्यं वृष्यं स्वल्पाग्निवर्धनम् । पारुक, वीरसेन, पीर, वीरारुक और आलुक यह आलुओंके नाम हैं। सब प्रकारके पालु-शीतष्ठ, विष्टम्भी, मधुर, भारी, मूवमलको बढानेवाले, रूक्ष, दुर्जर, रक्तपित्तनाशक, कफवातकारक, बलवीर्यवर्धक
और किचित पग्निको बढानेवाले हैं। इन्हें अंग्रजीमें Sweet Potatoe । कहते हैं ॥ ९५॥ ९६ .. .Aho i.Shrutgyanam