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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२८५) हरनेवाला होता है तथा हल्का पौर दीपन होता है। वही यदि नवण पौर तैल करके युक्त कर लिया जाय तो स्निग्ध और भारी हो जाता है। एक दूसरे सफेद बैंगन होते हैं जो देखने में मुर्गीके अण्डे के समान होते हैं, वह बवासीरमें विशेष हितकर होते हैं। अन्य गुणों में पहले बैंगनसे हीन गुण होते हैं । ७९-८२ ॥
सिडिशः। तिंडिशो रोमशफलो मुनिनिर्मित इत्यपि ॥ ८३ ॥ तिडिशोरुचिकृद्भेदी पित्तश्लेष्मापहः स्मृतः। सशीतो वातलो रूक्षो मूत्रलश्चाश्मरीहरः ।। ८४॥ विण्डिश, रोमशफल, पौर मुनिनिर्मित यह टिंडसोके नाम हैं। टिडंसरुचिकारक, भेदी, पित्तकफनाशक, शीतल, वातकारक, रूक्ष, मूत्रको छानेवाले और पथरीको दूर करते हैं। ८३ ॥ ८४ ॥
पिंडारम् । पिंडारं शीतलं बल्यं पित्तघ्नं रुचिकारकम् । पाके लघु विशेषेण विषशांतिकरं स्मृतम् ।। ८५॥ पिंडार-शीतल, बलकारक, पित्तनाशक, रुचिकारक, पाकमें इसका, विशेष कर विषविकारकी शांति करता है । ८५ ॥
कर्कोटकी। कर्कोटकी पीतपुष्पा महाजालीति चोच्यते । कर्कोटक्याः फलं कुष्ठहल्लासारुचिनाशनम् ॥८६॥
खासकासज्वरान् हंति कटुपाकं च दीपनम् । कर्कोटकी, पीतपुष्पा, महाजानी यह ककोड़ेके नाम हैं। ककोड़े के फन कुष्ठ, हल्लास, अरुचि, श्वास, कास पौर जारोको दूर करते हैं तथा कटुपाकी, और दीपन ॥ ८६. Aho ! Shrutgyanam