________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
( २८३) दीपन, स्निग्ध, उष्णा, कासहर तथा रक्तविकार, ज्वर, त्रिदोष पर कृमियों को दूर करता है। पटोलकी बेलकी जड सुखपूर्वक विरेचन करनेवाली है। नाल कफनाशक है, पत्र पित्तको दूर करनेवाले हैं और फल त्रिदोषनाशक हैं। इसीके समान कड़वे पटोल के भी गुण हैं । ६९-७२ ।। बिंबी | बिंबी रक्तफला तुंडी तुंडिकेरी च बिंबिका | ओष्ठोपमफला प्रोक्ता पीलुपर्णी च कथ्यते ॥ ७३ ॥ बिंबीफलं स्वादु शीतं गुरु पित्तास्रवातजित् । स्तंभनं लेखनं रुच्यं विबंधाध्मानकारकम् ॥ ७४ ॥
विंबी, रक्तफला, तुण्डी, तुण्डिकेरी, बिम्बिका, पोष्टोमफडा, पीलुप यह कंदूरी के नाम हैं। कंदूरी-स्वादु, शीत, भारी, पित्त, रक्त और वातविकारको जीतनेवाली है । एवं स्तंभन, लेखन, रुचिकारक पौर विबंध तथा आध्मान को करनेवाली है ॥ ७३ ॥ ७४ ॥
शिंबीद्वयम् ।
शिंबी शिविः पुस्तशिबी तथा पुस्तकशिबिका | शिबीद्वयं च मधुरे रसे पाके हिमं गुरु ।। ७५ । बल्यं दाइकरं प्रोक्तं श्लेष्मलं वातपित्तजित् । कोलशिबी कृष्णफला तथा पय्यैकपादिका ॥ ७६ ॥ कोलशिबी समीरनी गुर्व्युष्णा कफपित्तकृत् । शुकाग्रिसादकृवृष्या रुचिकृद्भद्धविड् गुरुः ॥ ७७ ॥
.
शिंबी, शिबि, पुस्तशिबी और पुस्तकशिबिका यह दोनों प्रकारकी सेमफलियों के नाम हैं। दोनों प्रकारकी सेमफली-रस और पाक में मधुर, शीतल, भारी, बलकारक, दाह करनेवाली, कफवर्द्धक और वात पित्तके जीतनेवाली हैं ।
Aho ! Shrutgyanam