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( २४०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
कपर्दकम् । कपदको वराटश्च कपर्दी च वराटिका। कपर्दिकाहिमा नेत्रहिता स्फोटक्षयापहा ॥ १५६ ॥ कर्णस्रावाग्निमांद्यघ्नी पित्तास्रकफनाशिनी । कपर्दक, वराट, कपर्दी और वराटिका यह कौडियों के नाम हैं । कौड़ियाँ-शीतल, नेत्रहितकारी, फोड़े, क्षय, कर्णनाव, मंदाग्नि,पित्त, रक्त और कफको दूर करनेवाली है। इसे अंग्रेजीमें Cowries कहते हैं ॥१५६॥
शंखः। शंखः समुद्रजः कम्बुः सुनादः पावनध्वनिः॥१९७॥ शंखो नेत्र्यो हिमः शीतो लघु पित्तकफास्त्रजित । शंख, समुद्र ज, सुनाद, पावन वनि यह शंखके नाम हैं । शंख नेत्रोंको हितकारी, ठण्डा, शीतल, लघु, पित्त, कफ और रक्तको जीतनेवाला है। १५७ ॥
बोलम् । बोलं गंधरसं प्राणपिंडगोषरसाः स्मृताः ॥ १५८ ॥ बोलं रक्तहरं शीतं मेध्यं दीपनपाचनम् । मधुरं कटुतिक्तं च दाइस्वेदत्रिदोषजित् ॥ १५९ ॥ ज्वरापस्मारकुष्ठघ्नं गर्भाशयविशुद्धिकृत् । बोल,गंधरस,पाणपिण्ड पौर गोपरस यह बोलके नाम हैं।बोल रक्तको हरनेवाला, शीतल,बुद्धिवर्द्धक, दीपन, पाचन, मधुर, कटु, सिक्त तथा दाह, स्वेद विदोष, घर, अपस्मार और कुष्ठको हरनेवाला एवं गर्माशयको शुद्ध करनेवाला ।। १५८ ।। १५९ ॥
कंकुष्ठम् । तत्रैकंगलकाख्यं स्यात्तदन्यद्रेणुकं स्मृतम् ॥१६०॥