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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२३७ )
स्फोटेका। स्फटी च स्फटिका प्रोक्ताखेता च शुभरंगदा १४१॥ दृढरंगा रंगदृढा दृढा रंगापि कथ्यते।। स्फटिकातु कषायोष्णावातपित्तकफवणान् ॥१२॥ निहंति श्वित्रवीसन योनिसंकोचकारिणी । स्फटी, स्फटिका, श्वेता, शुभरंगदा, दृढ़रंगा, रंगहढा, दृढारंगा यह फटकड़ीके नाम हैं। इसे फारसीमें जाकल फेद और अंग्रेजीमें Alum कहते हैं।
फटकड़ी-कषाय, उष्ण, और योनिसंकोच करनेवाली है । तथा वात,. पित्त, कफ, व्रगा, श्वित्र और विसर्पको नष्ट करनेवाली है ।। १४१ ॥ १४२ ।।
राजावतः। राजावतःकटुस्तिक्तःशिशिर पित्तनाशनः ।। १४३ ॥ राजाश्र्तः प्रमेहनश्छर्दिहिकानिवारणः । राजावर्त-कटु, तिक्त, शीतल, पिननाशक, प्रमेह, छर्दी और हिच.. की को दूर करनेवाला है ॥ १४३ ॥ .
चुवकः । चुंबकः कांतपाषाणोऽयस्कांतो लोहवर्षकः ॥१४॥ चुंबको लेखनः शीतो मेदोविषगरापहः। चुंबक, कांतपाषाण, अयस्कान्त पौर लोहकर्षक यह चुंधकके नाम हैं। चुंबक लेखन, शीतल, मेद, विष और गरको दूर करनेवाला
गरिकम् । गैरिकं रक्तधातुश्च गैरेय गिरिज तथा ॥ १४५ ॥ स्वर्णगैरिकमन्यत्त ततो रक्ततर हि तत् ।