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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
(२०९)
शमी - तिक्त, कटु, शीत, कषाय, रेचनी तथा हल्की है। और कफ, कास, भ्रम, श्वास, कुष्ठ, अर्श, कृमि इनको दूर करती है ॥ ६८ ॥ ६९ ॥
सप्तपर्णः ।
सप्तपर्णो विशालत्वक शारदो विषमच्छदः । सप्तपर्णो व्रणश्लेष्मवातकुष्टास्रजंतु जित् ॥ ७० ॥ दीपनःश्वास गुल्मनः स्निग्धोष्णस्तुवरःसरः
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समपण, विशालत्वक्, शारद, विषमच्छद, यह सप्तपर्णके नाम हैं । इसको हिन्दी भाषामें सतौना और सतवन कहते हैं। इसका लेटिन नाम Alstonia Scholaris है । सतौना - व्रण, कफ, बात, कुष्ठ, रक्त और कृमियों को दूर करने वाला है। तथा दीपन है एवं श्वास और गुल्मको दूर करनेवाला, स्निग्ध, उभ्या, कसैला और दस्तावर है ॥ ७० ॥
तिनिशः ।
तिनिशः स्यंदनो नेमी रथदुवैजुलस्तथा ॥ ७१ ॥ तिनिशः श्लेष्म पित्तास्रमेदः कुष्ठप्रमेह जित् । तुवरः श्वित्रदाहघ्नो व्रणपांडुकृमिप्रणुत् ॥ ७२ ॥
तिनिश, स्यन्दन, नेमी, रथगु, वंजुल यह तिनिशवृक्ष के नाम हैं । इसको तिरिच्छ भी कहते हैं । तिरिच्छ कसैला, कफ, पित्त, रक्त, मेद, कुष्ठ, प्रमेह, श्वित्र, दाह, व्रण, पाण्डु और कमियोंको दूर करनेवाला है । इसको अंग्रेजीमें Emgeniadal Bargia oides कहते हैं ॥ ७१ ॥ ७२ ॥
भूमिसः । भूमिसsो द्वारदा तु शरद्भानुः खरच्छदः । भूमिसस्तु शिशिरो रक्तपित्तप्रसादनः ॥ ७३ ॥
इति घटादिवर्गः ।
भूमिसह, द्वारदा, शद्भानु, स्वरच्छद यह भूमिसहा नाम हैं। इसे
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