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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१९७) शिरीषो मधुरोऽनुष्णस्तिक्तश्च जुवरो लघुः ।।
दोषशोथविसपघ्नः कासव्रणविषापहः॥१४॥ शिरीष, भंडिन, भण्डी, भण्डीर, कपीतन, शुकपुष्प, शुकवर, मा पुष्प और शुकप्रिय यह शिरीषके नाम हैं। इसको हिन्दीमें शिरीह तथा सिरिस और फारसीमें दरख्ते जकरिया कहते हैं। शिरीष-मधुर, शीतल, तिक्त, कसैला, हनका तथा त्रिदोष, शोष, विसर्प, काल और ब्रोंको दूर करता है ॥ १३ ॥ १४॥
सीरिवृक्षाः पंचवल्कलाः। न्यग्रोधोदुंबराश्वत्थपारिषप्लक्षपादपाः। पंचैते क्षिरिणो वृक्षास्तेषां त्वकू पंचवल्कलम॥१५॥ केचित्तु पारिषस्थाने शिरीष वेतस परे । क्षीरिवृक्षा हिमा वण्या योनिरोगवणापहाः ॥ १६॥ रक्षाकषाया मेदोना विपर्पामयनाशनाः । शोथपित्तकफास्त्रनास्तन्या भग्रास्थियोजकाः१७॥ त्वपंचकं हिमं पाहि व्रणशोथविसर्पजिन् । तेषां पत्रं हिमं पाहि कफवातास्रनुल्लघु ॥ १८॥ विष्टंभाध्मानजित्तिक्तं कषाय लघु लेखनम् । वड, गलर, पीपन, पारसीपीपल पोर प्लवं यह पांच सीरीष (. वाले पुष) कहलाते हैं। उनकी छालको पंचवरकल कहते हैं। कोई पारसी पीपलके स्थान में सिरस अथवा वेततको क्षीरिवृक्षों में गिनते हैं। परंतु सिरीष और घेतम दोनों में दूध नहीं होता है, इसलिये पारस पीपल ही लेना चाहिये । क्षीरिपक्ष-शीवन, वर्णको उत्तम सरनेवाले, कम कसैले, दूधको बढानेवाले, बूटी हुई हड्डीको जोडनेवाले तथा योनिरोग, अम, मेद, विसर्प रोग,शोथ, पिन, कफ तथा रक्तविकारको जीतनेशले हैं