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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१९३ )
चतुरम्लं पंचाम्लम् । अम्लवेतसवृक्षाम्लबृहज्जबीरनिंबुकैः ॥ १४७॥ चतुरम्लं हि पंचाम्लं बीजपूरयुतैर्भवेत् । अम्ल वेत, अम्ल वृक्ष, वडा नम्भीरीनीवू तथा कागजी नींबू इन चारोको मितानेसे चतुरग्ल और इन चारोंमें बिजौरा नीम्बू मिलानेसे पंचाम्स बन जाता है ॥ १७॥
परिभाषा। फलेषु परिपक्वं यद्गुणवत्तदुदाहृतम् ॥ १४८॥ बिल्वादन्यत्र विज्ञेयमाम तद्धि गुणाधिकम् । फलेषु सरसं यत्स्याद्गुणवत्तदुदाहृतम् ॥ ११९ ॥ द्राक्षाबिल्खशिवादीनां फलं शुष्कं गुणाधिकम् । फलतुल्यगुणं सर्व मज्जानामपि निर्दिशेत् ॥ १९० ।। फलं हिमाग्निदुर्वातव्यालकीटादिदूपितम् । अकालजं कुभूमीजं पाकातीतं न भक्षयेत् ॥ १५१ ॥ .
इति कनवर्गः। बेनके अतिरिक्त शेष सब फन पके हुए ही अधिक गुणवाले हैं। परंतु बेल तो कच्चा ही अधिक गुणोंवाला होता है। दाख, वेन और हरड भादिके सूखे फन अधिक गुणोंवाले हैं। जो गुण फलोंमें वहेरें सो गुण उनकी मज्जामें भी जानने । जो फल परफ, भग्नि, दूषितपवन, सर्प अथवा कीहा मादिसे क्षित हो, विना समय उत्पन्न हुभा हो, बुरीभूमिमें उत्पन्न हपा हो अथवा पककर खराब हो गया हो पर कदापि नहीं खाना चाहिये।। १५८ ॥ १५१ ॥
इति श्रीवैद्यरत्नपंडितरामप्रसादात्मज-विद्यालङ्कार-शिवशर्मवैवरुवशिवप्रकाशिकाभाषायां हरीतक्यादिनिघण्टौ फलवर्गः समाप्तः ॥ ५॥
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Aho! Shrutgyanam
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