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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१७९) करमर्दद्वयं त्वाममम्लं गुरु तृषापहम् ॥ ८० ॥ उष्णं रुचिकरं प्रोक्तं रक्तपित्तकफप्रदम् । तत्पक्वं मधुरं रुच्य लघुपित्तसमीरजित् ॥ ८१ ॥ करमर्द, सुषेण और कृष्ण पाकफल यह करौंदेके नाम हैं। जिसके छोटे परक हो उसको करमर्दिका (करौंदी) कहते हैं । इसको अंग्रेजी में Jasmine flowered Carriressa कहते हैं ।
कच्चे करौंदा करौंदी और खट्टे, भारी, प्यासको नष्ट करनेवाले,उष्ण, रुचिकारक और रक्तपित तथा ककको उत्पन्न करनेवाले हैं, पक्के करौंदे
और करौंदी-मधुर, रुचिकारक, हलके और पित्त तथा वायुको नष्ट कर नेवाले हैं। ७९ ॥ ८१॥
प्रियालम् । प्रियालस्तु खरस्कंधश्वारो बहुलवल्कलः । राजादनं तापसेष्टः सन्नकदुर्धनुःपटः ॥ ८२ ॥ चारस्तु पित्तकासनः तत्फलं मधुरं गुरु । स्निग्ध सरं मरुत्पित्तदाहज्वरतृषापहम् ॥ ८३॥ प्रियालमज्जा मधुरा वृष्या पित्तानलापहा ।
हृद्योऽतिदुर्जरः स्निग्धो विष्टंभी चामवर्द्धनः ॥८॥ प्रियाल, खरस्कन्ध, चार, बहुलवल्कल, राजादन, तापसेष्ट, सन्त्रकहूँ और धनु:पट यह चिरौंजीके नाम हैं। इसको हिन्दी में चिरौंजी, फार. सीमें बुकलेखाजा कहते हैं । चिरौंजी पित्त और कासको दूर करती है। उसका फल मधुर, भारी, स्निग्ध, दस्तावर और वायु, पित्त, दाह, ज्वर तथा पासको दूर करता है। चिरौंजीकी मजा-मधुर, वीर्यवर्धक, पित्त सथा अग्निको दूर करनेवाली, हृदयको हितकारी, अत्यन्त दुर्जर, स्निग्ध, विष्टम्भकारक और पामको बढाने वाली है ॥ ४५ ॥ ८४ ॥
Shrutgyanam