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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१७५ )
कपित्थम् । कपित्थस्तु दधित्थः स्यात्तथा पुष्पफलः स्मृतः । कपिप्रियो दधिफलस्तथा दंतशठोऽपि च ॥ ६० ॥ कपित्थमाम संग्राहि कषायं लेखनं लघु । पक्वं गुरु तृषाहिकाशमनं वातपित्तजित् ॥ ६१ ॥ स्वाद्वम्लं तुवरं कण्ठशोधनं ग्राहि दुर्जरम् । कपित्थ, दधित्थ, पुष्पफल, कपिप्रिय, दधिफल और दंतशठ यह कैथके नाम हैं। इसे हिन्दीमें कैथ और अंग्रेजीमें woodapple कहते हैं। कच्चा कैथ-ग्राही, कसैला, लेखन और हलका है । पक्क कैथ-भारी, प्यास और हिचकियोंको दूर करनेवाला, वात तथा पित्तको जीतनेवाला, स्वादु, अम्ल, कसैला, कण्ठको शुद्ध करनेवाला, ग्राही तथा दुर्जर है ॥६०॥६१॥
नारंगम् । नारंगो नागरंगः स्यात्त्वक्सुगंधो मुखप्रियः ॥६२॥ नारंगं मधुराम्लं स्याद्रोचनं वातनाशनम् ।
अपर त्वम्लमत्युष्णं दुर्जरं वातहृत्सरम् ॥ ६३ ॥ नारंग, नागरंग, त्वम्सुगन्ध पौर मुखप्रिय यह नारंगीके नाम हैं । इसे हिन्दीमें नारंगी, फारसीमें नारंग और अंग्रेजीमें Orrange कहते हैं। नारंग-मधुर, खट्टा, रुचिकारक, वातनाशक है। दूसरी प्रकारके नारंगी--अम्ल, अत्यन्त उष्ण, दुर्जर, वातहारक और दस्तावर है॥ ६२ ॥ ६३ ॥
तिंदुकम् । तिदुकः स्फूर्जकः कालस्कंधश्च शितिसारकः । स्यादामं तिंदुकं पाहि वातलं शीतलं लघु ॥६४ ॥ पक्वं पित्तप्रमेहास्रश्लेष्मघ्नं मधुरं गुरु।। सिंदुक्त, स्फूर्जक, कालस्कन्ध और शितिसारक यह तेन्दूके नाम हैं।