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________________ (१६६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। आम्रावर्तस्तृषाच्छर्दिवातपित्तहरः सरः । रुच्यः सू-शुभिः पाकाल्लघुश्च स हि कीर्तितः१७॥ पके हुए आमका रस वस्त्रपर विछाकर धूपमें बार २ रस डालकर मुखाया हुमा आम्रावर्त कहलाता है। पाम्रावर्त--दस्तावर, रुचिकारक, सूर्यकी किरणों द्वारा पकनेसे लघु और प्यास, वमन, वात तथा पिसको हरता है ।। १६ ॥ १७ ॥ आम्रबीजम् । आम्रबीजं कषायं स्याच्छर्यतीसारनाशनम् । ईषदम्लं च मधुरं तथा हृदयदाहनुत् ॥ १८॥ आमकी गुठली- कसैली, किश्चित भग्न, मधु, हृदयकी दाहको नष्ट करनेवाली और वमन तथा अतीसारको नष्ट करनेवाली है ॥ १८ ॥ नवपल्लवम् । आम्रस्य पल्लवं रुच्यं कफपित्तविनाशनम् । पाम्रके पत्ते-रुचिकारक और कफ तथा पिसको नष्ट करते हैं। आम्रातकम् । आम्रातकः पीतनश्च मर्कटाम्रः कपीतनः ॥ १९ ॥ आम्रातमम्लं वातघ्नं गुरूष्णं रुचिकृत्सरम् । पक्कं तु तुवरं स्वादु रसे पाके हिमं स्मृतम् ॥२०॥ तर्पणं श्लेष्मलं स्निग्धं वृष्यं विष्टंभि बृंहणम् । गुरु बल्यं मरुत्पित्तक्षतदाहक्षयास्रजित् ॥२१॥ पानातक, पीतने, मर्कटाम्र और कपीतन यह अम्बोडके नाम हैं। इसको हिन्दी में अम्बाडा और अंग्रेजी में Spondias Minate कहते हैं। मानंतक-खट्टा, वातनाशक, भारी, उष्ण, रुचिकारक और दस्तावर है। पका हुआ आम्रातक-कसैला, स्वादु, रस"तथा पाकमें शीतल,
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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