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भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
वंशपत्री ।
वंशपत्री वेणुपत्री पिंगा हिंगुशिवाटिका । हिंगुपत्रीगुणा विज्ञैर्वेशपत्रीव कीर्तिताः ॥ २७१ ॥
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वंशपत्री, वेणुपत्री, पिङ्गा और हिंगुशिवाटिका यह वंशपत्रीके नाम हैं। उसके गुण विद्वानोंने हिंगुपत्रीके समान ही कहे हैं ।। २७१ ॥ मत्स्याक्षी । मत्स्याक्षी बाह्निकी मत्स्यगंधा मत्स्यादनीति च । मत्स्याक्षी ग्राहणी शीता कुष्टपित्तकफास्रजित २७२ लघुस्तिका कषाया च स्वादी कटुविपाकिनी ।
मत्स्याक्षी, बालिकी मत्स्यगन्धा, मत्स्यादनी ये मत्सीके नाम हैं । माली - ग्राही, शीतल, लघु, तिक्त, कसैली, स्वादु, कटुपाकी तथा कुष्ठ, पित्त, कफ और रक्तविकार इनको नष्ट करनेवाली है इसको मछेछी भी कहते हैं ।। २७२ ॥
सर्पाक्षी ।
सर्पाक्षी स्यात्तु गंडाली तथा नाडीकलायका ॥ २७३ ॥ सर्पाक्षी कटुका तिक्का सोष्णा कृमिनिकृन्तनी । वृश्विको दुरुसर्पाणां विषघ्नी व्रणरोपणी ॥ २७४ ॥
सर्पाक्षी, गण्डाली और नाडीकलायका यह सरहटी ( गोहके आदे ) के नाम हैं । सर्पाक्षी-कटु, तिक्त, गरम तथा कृमि, विच्छु, चूहा और सांप एनके विषको मारनेवाली तथा व्रणको भरनेवाली है ।। २७३ ॥ २७४ ॥
शंखपुष्पी | शंखपुष्पी तु शंखाह्ना मांगल्या कुसुमापि च । शंखपुष्पी सरा मेध्या वृष्या मानसरोगहृत् ॥ २७५॥