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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
पातालगरुड़ी ।
छिलहिंडो महामूलः पातालगरुडाह्वयः । छिलहिंडः परं वृष्यः कफघ्नः पवनापहा ॥ २६६ ॥
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छिलहिण्ड, महामूल, पातालगरुड तथा गरुडके सम्पूर्ण नाम यह पाताळगारुडीके नाम हैं । यह अत्यन्त वीर्यवर्धक, कफ तथा वातको नष्ट करनेवाली है ॥ २२६ ॥
बंदा | वंदा वृक्षादनी वृक्षभक्ष्या वृक्षरुहापि च । वंदाकः स्याद्धिमस्तिक्तः कषायो मधुरो रसे ॥ २६७ ॥ कफवातास्ररक्षोत्रणविषापहा ।
मांगल्यः
चन्दा, वृक्षादनी, वृक्षभक्ष्या और वृक्षरुहा यह बन्देके नाम हैं। बन्दा - शीतल, तिक्त, कषाय, रस में मधु, मंगलकारक तथा कफ, वात, रक्त विकार, राक्षसरोग, व्रण और विषको हरता है ॥ २६७ ॥ वटपत्री ।
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वटपत्री तु कथिता मोहनी रेवती बुधः ॥ २६८ ॥ वटपत्री कषायोष्णा योनिमूत्रगदापहा ।
वटपत्री, मोहनी और रेवती यह वटपत्र के नाम हैं। वटपत्रीकसैली, गरम तथा योनि और मूत्रके रोगोंको हरती है ।। २६८ ॥ हिंगुपत्री ।
हिंगुपत्री तु कवरी पृथ्वीका पृथुका पृथुः ॥ २६९ ॥ हिंगुपत्री भवेद्रुच्या तीक्ष्णोष्णा पाचनी कटुः । हृद्वस्तिरुग्विबंधाशःश्लेष्मगुल्मानिलापहा ॥ २७० ॥
हिंगुपत्री, कथरी, पृथ्वीका, पृथुका, पृथु यह हिंगुपत्रीके नाम हैं। हिंगुपत्री - रुचिकारक, तीक्ष्ण, उष्ण, पाचन, कटु तथा हृदयरोग, वस्तिके रोग, विबन्ध, अर्श, कफ, गुल्म और बात इनको जीतनेवाली है ।। २६९ ।। २७० ।।
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