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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
( १२१ )
शतावरी बुद्धिवर्धक, हृदयको प्रिय, वीर्यवर्धक, रसायन, शीतवीर्य और अर्श, ग्रहणी, नेत्र रोग इनको नष्ट करनेवाली है ।। १८४-१८७ ॥
अंकुरः । तदंकुर स्त्रिदोषघ्नो लघुरशः क्षयापहः ॥ १८८ ॥
इसका अंकुर - त्रिदोषनाशक, दत्तका, अर्श और क्षयको नाश करनेबाला है || १८८ ॥
अश्वगन्धा ।
गन्धांता वाजिनामा दिरश्वगंधा दयाह्वया । वाराहकर्णी वरदा बलदा कुष्ठगंधिनी ॥ १८९ ॥ अश्वगंधानिलश्लेष्मश्वित्रशोथक्षयापदा ।
बल्या रसायनी तिक्ता कषायोष्णा तिशुक्रला ॥ १९०॥
गंधांता, वाजिगंधा, अश्वगंधा, हयाहया, वाराहकर्णी, तरदा, वलदा, कुष्ठगंधिनी यह असगन्ध के नाम हैं। इसको फारसी में मेहेमन वररी और अंग्रेजी में Winter Chery कहते हैं। अलगन्ध-बलकारक, रसायन, तिक्त, कषाय, उष्ण, अत्यन्त वीर्यवर्धक और वात, कफ, श्वित्र, शोथ, क्षय इनको नष्ट करनेवाला है ॥ १८९ ॥ १९० ॥
पाठा ।
पाठांबष्ठांबष्ठकी च प्राचीना पापचेलिका ।
एकाष्ठीला रसा प्रोक्ता पाठिका वरतिक्तिका ॥ १९१॥ पाठोष्णा कटुका तीक्ष्णा वातश्लेष्महरी लघुः । इंति शूलज्वरच्छर्दिकुष्ठातीसारहदुजः ॥ १९२ ॥ दाहकंडु विषश्वासकृमिगुल्मगरवणान् ।
पाठा, अंबष्ठा, अंबष्ठकी, प्राचीना, पापचेलिका, एकाष्टीला, रसा, पाठिका वरतिक्तिका यह पाढके नाम हैं। पाट-उष्णा, कडु,
वीक्ष्ण, वात