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(१०६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
लाल सहिजनको लघुशिशु कहते हैं। सहिजना-दस्तावर, पाकमें कटु तीक्ष्ण, उष्ण, मधुर, हल्की, दीपन,रोचन, रूक्ष, क्षार, तिक्त, दाहकारक, . ग्राही, बीर्यवर्धक हृदयको हितकर,पिन और रुधिरको कुपित करनेवाली, नेवोंको हितकर, कफ तथा वातनाशक और विद्रधि,सूजन, कृमिरोग,मेद, अपची, विष, प्लीहा, गुल्म, गंडमाला और व्रणोंको हरनेवाली है। सफेद सहिजनेके भी यही गुण हैं। परन्तु यह विशेषता अग्निदीपक, दस्तावर तथा विद्रधि, प्लीहा, वर्ण, पिन और रक्तविकारको नष्ट करनेवाली है। नाल सहिजनमें भी यही गुण हैं,विशेषतासे अग्निदीपक,और दस्तावरहै। सहिजनेका छाल और पत्तोंका स्वरस अत्यन्त पीडाको नष्ट करता है। इसके बीज नेत्रोंको हितकर, तीक्ष्ण, उष्ण, विषनाशक, वीर्यको कम करनेवाले तथा कफ और वातको नष्ट करने वाले हैं। उनकी नसवार सिर-दर्दको दूर करती है ॥ १०६-११२ ॥
- श्वेतनीलपुष्पा अपराजिता । आस्फोता गिरिकर्णी स्याद् विष्णुकांतापराजिता । अपराजिते कटुमेध्ये शीते कण्ठये सुदृष्टिदे ॥११३॥ कुष्ठमूत्रत्रिदोषामशोथव्रणविषापहे । कषाये कटुके पाके तिक्ते च स्मृतिबुद्धिदे ॥११४॥ भास्फोता, गिरिकर्णी, विष्णुक्रांता, अपराजिता यह अपराजिताके नाम हैं। अंग्रेजीमें इसे Megerin कहते हैं । - दोनों प्रकारकी अपराजिता-कटु, मेधावर्धक, शीतल, कण्ठको हितकर दृष्टिको देनेवाली, कषाय, पाकमें कटु, तिक्त, स्मृति और बुद्धिदायक तथा कोढ़, मूत्ररोग, त्रिदोष, ग्राम शोथ, व्रण और विष इनको नष्ट करने वाली है॥ ११३ ॥ ११४ ॥
सिंदुबारः । सिंदुवारः श्वेतपुष्पः सिंदुकः सिंदुवारकः । नीलपुष्पी तु निर्गुडी शेफाली सुवहा च सा ॥११५