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(१०४). भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
कफपित्तभ्रमच्छर्दिकुष्ठहल्लासरक्तजित् ॥ १० ॥ · प्रमेहश्वासगुल्मार्शोमूषिकाविषनाशनः ।
महानिंब, द्रेक, रम्यक, विषमुष्टिक, केशमुष्टि, निवरक, कार्मुक पौर क्षीच यह बकायनके संस्कृत नाम हैं। इसे हिन्दीमें डेक और बकायन, और फारसी में तुजाकुनार्य कहते हैं। बकायन-शीतल, रूक्ष, तिक्त, ग्राही, कषाय तथा कफ, पित्त, भ्रम, वमन, कोढ़, हल्लास, रक्तविकार, प्रमेह, श्वास, गुल्म, अर्श और चूहेके विषको नष्ट करनेवाली है ॥ ९९ ॥ १०० ॥
पारिभद्रः। पारिभद्रो निंबतरुमैदारः पारिजातकः ॥ ११ ॥
पारिभद्रोनिलश्लेष्मशोथमेद कृमिप्रणुत् । . तत्पुष्पं पित्तरोगघ्नं कर्णव्याधिविनाशनम् ॥१०२॥ . पारिभद्र, निंबतरु, मंदार, पारिजातक यह पारिभद्र के नाम हैं। इसे फारसीमें फरहद और अंग्रेजी में Erythrine Indica कहते हैं।
पारिभद्र-वात, कफ, शोथ, मेद और कृमिरोगको नष्ट करता है। इसका फूल पित्तरोगोंको नाश करनेवाला और कर्णरोगको हरनेवाला है॥ १०१ ॥ १०२॥
कांचनारः कोविदारश्च। कांचनारः कांचनको गंडारिः शोणपुष्पकः । कोविदारश्चमरिकः कुद्दालो युगपत्रकः ॥ १०३ ॥ कुण्डली ताम्रपुष्पश्चाश्मंतक: स्वल्पकेसरी। कांचनारो हिमो ग्राही तुवरः श्लेष्मपित्तहृत्॥१०४॥ कृमिकुष्ठगुदभ्रंशगंडमालाबणापहः।
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