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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी . । (९७)
यकृत्प्लीहोदरार्शोघ्नं कटुकं दीपनं परम् । तद्वन्मज्जा च विभेदी वातश्लेष्मोदरापहा ॥ ६६ ॥
शुक्ल एरंड, घमंड, चित्र, गंधर्वहस्तक; पंचांगुल, वर्धमान, दीर्घदण्ड तथा विडम्बक यह सफेद एरंडके नाम हैं । रक्त एरंड, रुबूक, उहबूक, रुबु, व्याघ्रपुच्छ वातारि, चंचु, उत्तानपत्रक यह लाल एरंड के नाम हैं । इनको हिन्दी में सफेद तथा लाल एरंड, फारसी में बेदंजीर और अंग्रेजीमें Castor Oil कहते हैं ।
दोनों प्रकारके एरंड - मधुर, उष्ण, भारी तथा शूल, शोथ, कमर, बस्ति और शिरकी पीडा, उदररोग, ज्वर, श्वास, कफ, अफारा, कास, कुष्ठ और आमवातको नाश करनेवाले हैं। एरंड के पत्र पित्त तथा रक्तको कुपित करनेवाले हैं तथा वात, कफ, कृमि और मूत्रकृच्छ्रको नष्ट करते हैं। एरंडकी को पल-गुल्म, वस्तिके शूल, कफ, वात कृमि, तथा साता प्रकार की वृद्धिको नष्ट करती है । एरंड के फल अत्यन्त गरम, कट्ट, दीपन तथा गुल्म, शूळ, वात, यकृत, प्लीहा, उदररोग और अर्श को नष्ट करनेवाले हैं । इसकी मज्जा मलभेदक तथा वात, कफ और उदरके रोगों को हरनेवाली है । ६०-६६ ॥
आकारकरभः ।
आकारकरभश्चैव कलकोऽथ कलकः । अल्लोष्णो वीय्यैण बलकृत्कटुको मतः ॥ ६७ ॥ प्रतिश्यायं च शोथं च वातं चैव विनाशयेत् ।
आकारकरभ, ग्राकल्लक और अकल्लक यह अकरकरेके नाम हैं । कर्कश - ऊष्णवीर्य, बलकारक, कंटु तथा वात, प्रतिश्याय और शोथनष्ट करता है ॥ ६७ ॥
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