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(९१) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
वृहती-ग्राही, हृदयको प्रिय, पाचन, कफ तथा वातको हरनेवाली,कटु, तिक्त, गरम तथा मुखकी विरसता,अरुचि, मल, कुष्ठ, मार, 'वास, शूल, कास तथा अग्नि की मन्दता इनकोर करनेवाली है ॥३५-३७ ।
कंटकारी। कण्टकारी तु दुःस्पर्शा क्षुद्रा व्याघी निदिग्धिका ॥ कंटारिका कंटकिनी धावनी बृहती तथा ॥ ३८॥ कंटकारी, दुःस्पर्शा क्षुद्रा; निदि ग्ध का, कंटारिका, कंटकिनी धावनी तथा वृहती यह कटेरी के नाम हैं ॥ ३८ ॥
उभे च बृहत्यौ यत आह सुश्रुतः। क्षुद्रायां क्षुद्रघंटाक्यां बृहतीति निगद्यते । श्वेता क्षुद्रा चंद्रहासा लक्ष्मणा क्षुद्रदूतिका ॥३९॥ गर्भदा चन्द्रमा चन्द्रा चन्द्रपुष्पा प्रियंकरी। कंटकारी सरा तिका कटुका दीपनी लघुः ॥४०॥ रूमोष्णा पाचनी कासश्वासज्वरकफानिलान् । निहंति पीनसं पार्खपीडाकृमिहृदामयान् ॥ ४॥ तयोः फलं कटु रसे पाके च कटुकं भवेत् । शुक्रस्य रेचनं भेदि तिक्तं पित्ताग्निकल्लघु ॥१२॥ कटेरी मौर बड़ी कटेरी दोनों ही वृहती कहलाती हैं। यह सुश्रुतमें कहा है। श्वेता, क्षुद्रा, चन्द्रहासा, लक्ष्मणा, क्षुद्रदूतिका, गर्भदा , चन्द्रमा, चन्द्रा, चन्द्रपुष्पा और प्रियकरी यह सफेद पुष्पवाली कटेरीके नाम हैं।
कटेरी-दस्तावर, तिक्त, कटु, अग्निदीपक, हलकी, रूक्ष गरम, पाचन करनेवाली तथा कास, श्वास ज्वर, कफ वात, पीनस, पसलीकी पीड़ा कृमि तथा हृदयके रोगोंको हरती है। दोनों कटेरियों के फन-कटु रस और पाकमें कडु, वीर्यके रेचन करने वाले, दस्तावर, तिक्त, पित्ताग्नि