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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । (९१)
शालपर्णी गुरुश्छर्दिज्वरश्वासातिसारजित् । शोषदोषत्रयहरी बृंहण्युक्ता रसायनी ॥ ३२ ॥ तिक्ता विषहरी स्वादुः क्षर्तकासकृमिप्रणुत् ।
शालपर्णी, स्थिरा, सौम्या, त्रिपर्णी, पीवरी, गुहा, विदारिगन्धा, दीर्घाघ्र दीर्घपत्रा और अंशुमती यह शालपर्णी के नाम हैं ।
शालपर्णी - भारी, शोष तथा त्रिदोषनाशक, धातुओं को पुष्ट करनेवाली आयुवर्द्धक, तिक्त, विषको हरनेवाली, मधुर तथा वमन, ज्वर, श्वास, अतिसार, क्षत, कास और कृमि इनको हरनेवाली है ॥ ३१ ॥ ३२ ॥
पृश्निपणा |
पश्रिपर्णी पृथकपर्णी चित्रपयत्रिपर्णिका ॥ ३३ ॥ क्रोष्टुविन्ना सिंहपुच्छी कलशी धावनी गुहा । पृश्निपर्णी त्रिदोषघ्नी वृष्योष्णा मधुरा सरा ॥३४॥ हंति दाहज्वरश्वासरक्तातीसारतृड्वमीः ।
पृश्निपर्णी, पृथक्पर्णी, चित्रपर्णी, अंघ्रिपणिका, काष्टुचित्रा सिंहपुच्छी कलशी तथा गुहा यह पृश्निपर्णी के नाम हैं ।
पृश्रिपर्णी- त्रिदोषन्न, वीर्य्यवर्द्धक, गरम, मधुर, दस्तावर तथा दाह, ज्वर श्वास, रक्तातिसार, प्यास और बमन इनको नष्ट करती है ॥ ३३ ॥ ३४ ॥
बृहती ।
वार्ताकी क्षुद्रभंटाकी महती बृहती कुली ॥ ३५ ॥ हिंगुली राष्ट्रिका सिंही महोटी दुष्प्रधर्षणी । बृहती ग्राहणी द्या पाचनी कफवातहृत् ॥ ३६ ॥ कटुतिक्तास्य वैरस्य मलारोचकनाशनी ॥
उष्णा कुष्ठज्वरश्वासशूलका साग्निमांद्यजित् ॥ ३७॥
वातकी, क्षुदभंटाकी, महती. बृहती, कुली, हिंगुनी, राष्ट्रिका, सिंही मोटी, दुष्प्रधर्षणी, यह बृद्दतीके नाम हैं, इसको बडी कटेली कहते हैं ।