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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (६९)
लवंगम् । लवंगं देवकुसुम श्रीसंज्ञं श्रीप्रभूनकम् । लवंगं कटुकं तिक्तं लघु नेत्रहित हिमम् ॥ २८॥ दीपनं पाचनं रुच्यं कफपित्तास्रनाशनम् । तृष्णां छर्दि तथाध्मानं शूलमाशु विनाशयेत्॥१९॥
कासं श्वासं च हिकां च क्षयं क्षपयति ध्रुवम् । 'लवंग, देवकुलम, श्रीसंज्ञ, श्रीप्रसूनक यह लवंग के संस्कृत नाम हैं। इसे हिन्दीमें लौंग, फारसीमें मेहरू और अंग्रेजीमें Cloves कहते हैं।
नवंग-कटु, तिक्त, नेत्रको हितकारी, शीतल, दीपन, पाचन, रुचिकारक तथा कफ, रुधिरविकार, प्यास, वमन, आध्मान, शूल, कास, बास, हिचकी तथा क्षयको दूर करता है ॥ ५८ ॥ ५९ ॥
बहुला ( एला)। एला स्थूला च बहुला पृथ्वीका विषुटापि च ॥६॥ भद्रला वृहदेला च चन्द्रबाला च निष्कुटिः। स्थूला च कटुका पाके रसे चानिलकृल्लघुः ॥६१ ॥ रूक्षोष्णा श्लेष्मपित्तास्रकंडूश्वासतृषापहा । हल्लासविषवस्त्यास्यशिरोरुग्वमिकासनुत् ॥ ६२॥ एला, स्थूला, बहुला, पृथ्वीका, विकुटा, भद्रेला, बृहदेला, चन्द्रबाला और निष्कुटी यह एलाके संस्कृत नाम हैं। इसे हिन्दीमें बडी इलायची, फारसीमें हैलकला और अंग्रेजी में Large Cardamum कहते हैं। .
एला-पाक और रसमें कटु, वातकारक, हलकी, कक्ष, उष्ण तथा कफ, पित्त, रक्तविकार, कण्ड (खुजली), श्वास, हल्लास (सूखे वमन होना), विष, वस्ति (मलाना ) के रोग, मुख के रोग, शिरके रोग, वमन और कासको नष्ट करनेवाली है ६०-६२ ॥
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