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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (५९) होती है । इस प्रकार कस्तूरी तीन प्रकारकी है। कामरूप देशकी कस्तूरी उत्तम, नेपालकी मध्यम तथा काश्मीरकी हीन गुणोंवालो है।।
कस्तूरिका-कटु, तिक्त, खारी,गरम,वीर्यवर्धक, भारी और कफ, वात, विष, वमन, शीत तथा दुर्गन्धताको हरनेवाली है ॥ ५-८॥
लताकस्तूरिका। लता कस्तूरिका तिक्तास्वाद्वीवृष्या हिमा लघुः॥९॥ चक्षुष्या छेदनी श्लेष्मतृष्णावस्त्यास्यरोगहृत् । लता, कस्तूरी, तिक्त, मधुर, वीर्यवर्धक, शीतल, हलकी, नेत्रोंको हित करे, छेदन और कफ, तृष्णा तथा वस्ति (मसाना) और मुखके रोगोंका नाश करती है ॥९॥
गन्धमाजारवायम् । गन्धमार्जारवीर्य्यन्तु वीर्य्यकृत्कफवातहत् ॥१०॥ कण्डुकुष्ठहरं नेत्र्यं सुगन्धं स्वेदगन्धनुत् । गन्धमार्जारवीर्य (जवादिकस्तुरी)-वीर्यकारक, नेत्रोंको हितकारी, सुगन्धयुक्त तथा कफ, वात, कण्डु, कुष्ठ और स्वेदकी गन्धको नष्ट करनेवाली है॥ १०॥
चन्दनम् । श्रीखण्डं चन्दनं न स्त्री भद्रश्रीस्तैलपणिका ॥११॥ गन्धसारो मलेयजस्तथा चन्द्रद्युतिश्च सः। स्वादे तिक्तं कषे पीतं छेदे रक्तं तनौ सितम् ॥१२॥ ग्रन्थिकोटरसंयुक्तं चन्दनं श्रेष्ठमुच्यते । चन्दनं शीतलं रूक्षं तिक्तमालादनं लघु ॥ १३ ॥ श्रमशोष विषश्लेष्मतृष्णापित्तास्रदाहनुत् । श्रीखंड और चन्दन स्वीलिङमें नहीं होते । श्रीखंड, चन्दन, भद्रश्री,तैल पर्णिका, गंधसार, मलयज तथा चन्द्रद्युति यह चन्दनके संस्कृत नाम हैं।