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भाव पुजा तस सारे ॥ भविजन प्ररचन परखीरे ॥ ८ ॥ ६० ॥ भाव पुजा ते कही मुनिवरने ॥ श्रावकने द्रव्यभावरे ॥ वृद्धिवादे बोलीजी पुजा भवजल तरवा नावरे ॥ ९ ॥ ६० ॥ श्री जिन अंगे मज्जन करतां ॥ सत उपवासनुं पुन्यरे द्रव्य सुगंध विलेपन करतां ॥ सहस लाभ होय धन्यरे ॥ १० ॥ ध० ॥ सुरभि कुसम मालाये पूजे || लाभ लक्ष उपवारूरे || नाटक गीत करेजिन आगे || लहे अनंत सुख वासरे ॥ ११ ॥ घ० ॥ श्री जिन भक्ति तणां फल एहवां || जांणी लाभ धरीजेरे || वलि विषेके शेत्रुजय सेवा || लाभ पारनलही जेरे || १२ || ध० ॥ भाग एक शेत्रुंजय केरो || तीर्थ श्री गिरिनाररे ॥ नेमिकल्याणिक त्रण हुआ जिहां || महिमा न लहुं पाररे १३ ॥ घ० ॥ प्रगट श्री प्रभास पुराणे ॥ जो जो मूकी मानरे ॥ रेवतनेमि तणो जे महिमा || उमयाने इशानरे || १४ | ० || वलि बंधन सामर्थ तणे खपे ॥ तपजिहां तप्यो मुरारीरे ॥ अधिकार प्रगट जिहां दिसे || वामनने अवतारेरे १५ ॥ ६० ॥ यतः । प्रभास पुरांणना श्लोक ॥ पद्मासन समासीन
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